डिकपलिंग की दुनिया में व्यापार अब भरोसे से नहीं, बचाव से चलता है

गौरव त्रिपाठी
गौरव त्रिपाठी

कुछ साल पहले जब अमेरिका को छींक आती थी, तो चीन बुखार में तपने लगता था। आज हालात बदल चुके हैं — छींक वहीं है, लेकिन चीन ने मास्क पहनकर रास्ता बदल लिया है।

पाकिस्तान में सिंध-पंजाब जल युद्ध और मंत्री की जली हुई किस्मत

जब दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं रिश्ते में थीं, तो वैश्विक व्यापार को एक छत मिली हुई थी। लेकिन अब यह रिश्ता भी उस कॉलेज के रोमांस जैसा बन चुका है, जिसमें दोनों पार्टनर नए-नए “करियर ऑप्शन” तलाश रहे हैं।

शादी नहीं, तलाक़ की ओर बढ़ता सौदा

टैरिफ पहले डंडा था, अब दीवार बन चुका है। ट्रंप ने जिस युद्ध की शुरुआत की थी, उसकी चिंगारी अब भी जल रही है। चीनी एक्सपोर्टर्स अब अमेरिका को वैसा ही देख रहे हैं जैसे किसी पूर्व प्रेमी को – “हमने बहुत कुछ सहा, लेकिन अब और नहीं!”

जब भरोसा टूटता है, तो Google Sheet नहीं, Global Shift बनता है

Allianz Trade के सर्वे से पता चला कि 95% चीनी एक्सपोर्टर अब अमेरिका की बजाय नई मंडियों की ओर जा रहे हैं। इंडोनेशिया, ब्राज़ील, भारत – सबको अब चीन अपनी “नई प्रोस्पेक्टिव डेट्स” की तरह देख रहा है। और अमेरिका? बस टैरिफ लादने में व्यस्त है।

निंगबो: अब केवल पोर्ट नहीं, रणनीति का सेंटर

चीन के निंगबो से उठती व्यापारिक लहर बता रही है कि नया मोटो है — “गो ग्लोबल, नो इमोशनल।” अब यह सिर्फ सामान की बात नहीं, सोच की बात है। चीन अब शॉपिंग मॉल नहीं, खुद मॉल बनना चाहता है।

डिकपलिंग: जब ‘मीठा बोलने वाले रिश्ते’ कड़वे फैसलों में बदलते हैं

चीन और अमेरिका की दूरी अब मीडिया की सुर्खियां नहीं, व्यवसाय की रणनीतियां बन चुकी हैं। अमेरिका में चीनी सामान के लिए 39% टैरिफ, यानी साफ संदेश — “हम अब तुम्हारे नहीं रहे।”

डोलता व्यापार, डगमगाता भरोसा

-$305 बिलियन का अनुमानित नुकसान दिखा रहा है कि यह लड़ाई केवल दो देशों की नहीं, पूरे ग्लोब की है। एक्सपोर्ट अब इंवॉइस पर नहीं, इनसिक्योरिटी पर चल रहा है।

क्या दुनिया तैयार है ‘मोनोपोलियों’ से मुक्त नए व्यापार युग के लिए?

आज चीन सीख चुका है — “एक दरवाज़ा बंद हो तो दूसरी खिड़की खोलनी पड़ती है, और अमेरिका अगर मुख्य गली है तो बाकी दुनिया शॉर्टकट।”

भारत जैसे देशों के लिए यह सुनहरा मौका है कि वे अपने व्यापारिक वैक्यूम को चीन के बदलते कदमों से भर सकें।

अमेरिका और चीन की इस ‘ट्रेड ब्रेकअप स्टोरी’ में सबक छिपा है — “भरोसा हो तो रिश्ते चलते हैं, नहीं तो डिकपलिंग सिर्फ नीति नहीं, नियति बन जाती है।”

अब जब चीन को अमेरिका से मोहभंग हो चुका है, तो बाकी दुनिया को भी तैयारी कर लेनी चाहिए — “रिश्ते में हम ही आपके लॉजिस्टिक पार्टनर हैं।”

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