रेट्रो रिव्यू : ‘बिन फेरे हम तेरे’ – शादी के बिना भी पूरी ज़िंदगी का साथ

शालिनी तिवारी
शालिनी तिवारी

आशा पारेख ने जमुना के किरदार में ऐसा जान डाल दिया है कि लगेगा कि आपके मोहल्ले की कोई “कठिन ज़माने की औरत” बोल रही है।
बेच दी गई, बंधक बनाई गई, और फिर भी बिना शादी के एक आदमी और उसके बच्चों की ज़िम्मेदारी उठाई — जमुना संघर्ष की चलता-फिरता प्रतीक बन जाती हैं।

रिश्तों का मेलोड्रामा: शादी नहीं, पर संस्कार पूरे!

जमुना और जगदीश शर्मा (राजेंद्र कुमार) का रिश्ता बिना शादी के पति-पत्नी जैसा दिखाया गया है। ये फिल्म 70s की होते हुए भी एक “लिव-इन विद सेंटीमेंट्स” वाला कांसेप्ट ले आती है। सोचिए, जमाना तो बदल चुका है, लेकिन Bollywood emotion वही है – “तुम बिन जी नहीं सकते, शादी हो या ना हो!”

राजू-देबू: बच्चे बड़े हुए, पर ड्रामा और भी बड़ा

राजू (विनोद मेहरा) और देबू (डॉक्टर साहब) को जमुना ने पाला है, लेकिन जैसे-जैसे ये बड़े होते हैं, उनकी प्रेम कहानियां भी मम्मी के अतीत से टकराने लगती हैं।
मतलब एक तरफ “मुझे बहू पसंद है” वाला सीन चल रहा होता है, और दूसरी तरफ “ओह नहीं! उसकी माँ वही निकली!” वाला सस्पेंस – जैसे Kyunki Saas Bhi Kabhi Bahu Thi को किसी ने 70mm पर डाल दिया हो।

जब Past ने मारी एंट्री: शिखा की शादी हो और मम्मी की हिस्ट्री ना निकले?

राजू की प्रेमिका शिखा की फैमिली से मिलते ही जमुना की पुरानी ज़िंदगी उसके सामने तांडव करने लगती है – क्योंकि शिखा के पापा जगमोहन वही निकले जो जमुना को जानते हैं। और इधर डॉक्टर देबू की प्रेमिका किरण की माँ कोई और नहीं बल्कि तेलनबाई — वही जिसने कभी जमुना को नचवाया था। ये बॉलीवुड है, यहां DNA टेस्ट नहीं, नसीब काम करता है।

शादी की ज़रूरत नहीं, ड्रामा ही काफी है

‘बिन फेरे हम तेरे’ असल में कहती है – “शादी के फेरों से ज़्यादा ज़िंदगी की कसमें निभाओ!”
फिल्म का टाइटल देखकर लगेगा कि ये कोई रोमांटिक कॉमेडी होगी, पर असल में यह रोमांटिक ट्रैजेडी+माँ-बेटे वाला फुल इमोशनल पैकेज है।
फिल्म की स्क्रिप्ट इतनी इमोशनल है कि आँसू नहीं निकले तो समझो नाक बंद है।

अगर आपको 70s का “बिना शादी के भी नारी महान” टाइप मेलोड्रामा पसंद है, जिसमें त्याग, ट्रेजेडी और थोड़ी सी तू-तू-मैं-मैं हो – तो ये फिल्म जरूर देखें।
Asha Parekh ने हर फ्रेम में अपने किरदार को इतना सशक्त बनाया है कि जमुना को सिर्फ माँ नहीं, ‘ममता की मिसाइल’ कहना चाहिए।

POK चाहिए या परेशानी? जोश में होश न गवाएं वरना जेब और जहान दोनों जाएं!

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