
बिहार में चल रहे Special Intensive Revision (SIR) अभियान के दौरान 65 लाख वोटरों के नाम लिस्ट से हटा दिए गए। चुनाव आयोग का दावा है कि यह नाम या तो मृतकों के हैं, या जिन्होंने पता बदल लिया है।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस तर्क से संतुष्ट नहीं। कोर्ट ने पूछा, “जिंदा होकर भी ‘मरे’ क्यों बताए गए?” — और इसी एक लाइन से पूरा मामला चर्चा में आ गया।
दो टूक: “15 जिंदा लोग लाइए, जिन्हें मृत घोषित किया गया”
जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि बिना उचित जांच के नाम काटे गए हैं, तो पूरी प्रक्रिया को रद्द किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि यदि गड़बड़ी साबित हुई, तो चुनाव आयोग को जवाबदेह ठहराया जाएगा।
65 लाख में कौन-कौन हटा? आंकड़ों की कहानी
-
22 लाख: मृत घोषित
-
36 लाख: दूसरे स्थान पर शिफ्ट
-
7 लाख: क्षेत्र बदल चुके
चुनाव आयोग ने कहा कि वोटर संख्या अब घटकर 7.89 करोड़ से 7.24 करोड़ हो गई है।
आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड क्यों नहीं मान्य?
सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि जब नागरिकों के पास आधार, वोटर कार्ड और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज़ हैं, तो फिर पहचान के लिए उन्हें अस्वीकार क्यों किया जा रहा है?
इस पर चुनाव आयोग का जवाब था — “राशन कार्ड फर्जी होते हैं।”
कोर्ट का पलटवार:

“दुनिया में ऐसा कोई दस्तावेज़ नहीं जिसकी नकल न हो सके। फिर वोटर को दोष क्यों?”
SIR पर फिलहाल रोक नहीं, लेकिन गंभीर निगरानी के संकेत
हालांकि कोर्ट ने SIR को फिलहाल जारी रखने की अनुमति दी है, पर ये साफ कहा कि यदि निष्पक्षता में कोई कमी पाई गई, तो SIR की साख खतरे में पड़ सकती है।
कौन हैं याचिकाकर्ता और क्या है अगली तारीख?
-
याचिकाकर्ता: मनोज झा (राजद), महुआ मोइत्रा (TMC) सहित कुल 11
-
वकील: कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, गोपाल नारायणन
-
आयोग का पक्ष: केके वेणुगोपाल, राकेश द्विवेदी
-
अगली सुनवाई: 12 अगस्त 2025 से
वोटर लिस्ट की ‘सफाई’ बनाम लोकतंत्र की ‘कतरन’
वोटर सूची की सफाई ज़रूरी है, लेकिन बिना न्यायिक संतुलन के यह प्रक्रिया लोकतंत्र की जड़ों को हिला सकती है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ने इस मुद्दे को अब राष्ट्रीय बहस का रूप दे दिया है।
डिंपल की साड़ी से मौलाना का माइंड ब्लास्ट, अब जुबान पर लगा इनाम फास्ट