आजाद-मौलाना की मुलाकात: यूपी में एक नया सियासी तूफान आ सकता है!

सुरेन्द्र दुबे ,राजनैतिक विश्लेषक
सुरेन्द्र दुबे ,राजनैतिक विश्लेषक

सियासी गलियारों में एक नई हलचल मची है। नगीना से सांसद और आज़ाद समाज पार्टी (एएसपी) के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद की हालिया मुलाकात ने यूपी की राजनीति में नए समीकरण का जन्म दिया है। यह मुलाकात, जो शुरू में एक औपचारिक शिष्टाचार भेंट समझी गई, सियासी हलकों में कयासों का बाजार गर्म कर रही है।
मौलाना खलील उर रहमान सज्जाद नोमानी से हुई मुलाकात को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह सिर्फ एक दोस्ताना मुलाकात है या इसके पीछे कोई गहरी राजनीतिक रणनीति छिपी हुई है?

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क्या आजाद की रणनीति दलित-मुस्लिम गठजोड़ को एकजुट कर सकती है?

चंद्रशेखर आजाद यूपी में आगामी पंचायत चुनाव और 2027 विधानसभा चुनाव से पहले ‘दलित-मुस्लिम’ (डीएम) समीकरण को मजबूत करने में जुटे हुए हैं। खासकर नगीना सीट पर उनकी जीत इसी गठजोड़ पर आधारित थी। अब मौलाना सज्जाद जैसे बड़े धर्मगुरु से मिलकर आजाद ने संकेत दिया है कि उनका फोकस 2027 के चुनावी रण में अपना दलित-मुस्लिम वोट बैंक बढ़ाने पर है।

आजाद की मुस्लिम समर्थक छवि को मिलेगी मजबूती?

चंद्रशेखर आजाद का मुस्लिम समुदाय के मुद्दों पर लगातार सक्रिय रहना, खासकर कांवड़ यात्रा और नमाज की आज़ादी पर उनके तीखे सवाल, उनकी मुस्लिम समर्थक छवि को मजबूत करते हैं। उनका बयान, “जब कांवड़ यात्रा के लिए सड़कें बंद हो सकती हैं, तो मुस्लिम समुदाय को नमाज की आज़ादी क्यों नहीं?” ने इस छवि को और धार दी है। इससे उनका समर्थन मुस्लिम समुदाय में बढ़ सकता है, जो उनकी रणनीति का अहम हिस्सा बन सकता है।

मायावती और आकाश आनंद के लिए बढ़ती चुनौती

बसपा प्रमुख मायावती और उनके भतीजे आकाश आनंद के लिए चंद्रशेखर आजाद का दलित-मुस्लिम गठजोड़ सबसे बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। मायावती हमेशा से बहुजन वोट के साथ मुस्लिम वोट को साधने की कोशिश कर रही हैं, ताकि सत्ता में वापसी हो सके। लेकिन आजाद की यह सियासी चाल उनके इस समीकरण को कमजोर कर सकती है। बसपा के वोट बैंक में गिरावट और आजाद की बढ़ती लोकप्रियता, खासकर युवाओं और अल्पसंख्यक समुदायों में, मायावती के लिए चिंता का विषय हो सकती है।

2027 के चुनाव में चंद्रशेखर आजाद की रणनीति की असल परीक्षा

अब यह देखना होगा कि क्या चंद्रशेखर आजाद और मौलाना सज्जाद नोमानी के बीच यह मुलाकात महज औपचारिकता तक सीमित रहेगी या यह एक नए राजनीतिक गठबंधन की शुरुआत होगी। अगर आजाद इस रणनीति में सफल होते हैं, तो 2027 के विधानसभा चुनाव में एएसपी की ताकत और बढ़ सकती है। लेकिन यह सवाल भी मौजूद है कि क्या ऐसे प्रभावशाली धार्मिक नेता खुले तौर पर आजाद का समर्थन करेंगे या यह मुलाकात सिर्फ व्यक्तिगत सहमति तक सीमित रहेगी। आने वाले महीनों में इस गठजोड़ का भविष्य स्पष्ट हो सकता है, जो यूपी की सियासत के ताने-बाने को नया मोड़ दे सकता है।

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