स्वतंत्रता दिवस पर हिंसा की आज़ादी? सीमा पर नागा बदमाशों का हमला

Lee Chang (North East Expert)
Lee Chang (North East Expert)

15 अगस्त 2025 को, जब देश स्वतंत्रता दिवस की खुशियाँ मना रहा था, उसी समय असम-नागालैंड सीमा पर मेरापानी में तीन युवकों के लिए यह दिन खून और खौफ की कहानी बन गया।
कदमगुड़ी गांव के रहने वाले सिमसत बसुमतारी, सुब्रत नायक और प्रकाश बोरो अपने दोस्तों के साथ एक जंगली इलाके में पिकनिक मना कर लौट रहे थे, तभी कथित नागा बदमाशों के एक ग्रुप ने उनका रास्ता रोक लिया

बिना उकसावे के हमला: दो की बेरहमी से पिटाई, एक को गोली

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, बिना किसी उकसावे के हमलावरों ने इन युवकों को घेर लिया और मारपीट शुरू कर दी।

  • सिमसत और सुब्रत को लाठियों से बुरी तरह पीटा गया,

  • जबकि प्रकाश बोरो पर एयर राइफल से गोली चलाई गई, जो उसके शरीर में जा लगी।

गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद, तीनों युवक किसी तरह जान बचाकर भागे और मेरापानी के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुँचे।

हेल्थ अपडेट: गोलाघाट सिविल अस्पताल में भर्ती

मेरापानी स्वास्थ्य केंद्र में प्रारंभिक इलाज के बाद, डॉक्टरों ने स्थिति को देखते हुए तीनों को गोलाघाट सिविल अस्पताल रेफर कर दिया।
डॉक्टरों के मुताबिक, प्रकाश की हालत गोली लगने की वजह से गंभीर बताई जा रही है, वहीं बाकी दो युवक मानसिक और शारीरिक रूप से आहत हैं।

जांच शुरू, तनाव बना हुआ

गोलाघाट जिला प्रशासन और पुलिस ने इस घटना की पुष्टि करते हुए कहा है कि ये हमला बिल्कुल भी उकसावे वाला नहीं था
वहीं सीमावर्ती गांवों में इस हमले के बाद भारी आक्रोश फैल गया है। पुलिस ने जांच शुरू कर दी है और नागालैंड प्रशासन से समन्वय के प्रयास किए जा रहे हैं। सरहद पर सुरक्षा बढ़ाने के लिए अतिरिक्त बलों की तैनाती की योजना बनाई जा रही है।

“बॉर्डर पर बर्बरता कब रुकेगी?” – लोग पूछ रहे हैं सवाल

स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया है कि यह पहली बार नहीं है जब नागालैंड की तरफ से इस तरह की हिंसक घटनाएं हुई हैं। राजनीतिक दलों ने भी इस मुद्दे को उठाया है और राज्य सरकार से सख्त कार्रवाई की मांग की है।

“देश आज़ाद हुआ था 1947 में, लेकिन मेरापानी आज भी आज़ादी से डरता है!”

क्या असम-नागालैंड सीमा एक ‘permanent tinderbox’ है?

असम और नागालैंड की सीमा दशकों से सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक विवादों से घिरी हुई है। पूर्व में भी ऐसी झड़पें हुई हैं जिनमें जानें गई हैं और तनाव बढ़ा है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि जब तक इन सीमाओं पर स्थायी समाधान नहीं होगा, हर स्वतंत्रता दिवस किसी के लिए डर का दिन बनता रहेगा।

आगे क्या? प्रशासन की चुनौतियाँ

  • पीड़ितों को न्याय मिलना

  • दोषियों की गिरफ्तारी

  • और सीमाई क्षेत्रों में स्थायी सुरक्षा समाधान लागू करना – अब ये तीनों चीजें प्रशासन की प्राथमिकता होनी चाहिए।

जब आज़ादी की सालगिरह भी खून में रंगी हो

देश जहाँ जश्न मना रहा था, मेरापानी में रक्त और बंदूक की आवाज़ें गूंज रही थीं।
क्या यही है सीमावर्ती ज़िंदगियों का भविष्य?

“जिन्हें सरहदों पर डर नहीं होता, वो शायद मेरापानी नहीं गए कभी…”

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