
1969 में रिलीज़ हुई ‘एक फूल दो माली’ एक ऐसी भावनात्मक फिल्म है जो अब भी दर्शकों के दिलों में जिंदा है। राज खोसला के निर्देशन में बनी इस फिल्म में प्यार, त्याग, मातृत्व और पितृत्व के भावों को बेहद मार्मिक तरीके से पेश किया गया है।
मुख्य कलाकारों की अदाकारी
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बलराज साहनी ने एक संघर्षशील पिता के रूप में दिल को छू लेने वाला परफॉर्मेंस दिया।
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संजय खान, एक फौजी प्रेमी के रूप में प्रभावशाली लगे, जो हालात से हार नहीं मानता।
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साधना ने अपने शांत लेकिन दृढ़ किरदार के ज़रिए एक महिला के दर्द और कर्तव्य को बखूबी दर्शाया।
संगीत: दिल की धड़कन बना
रवि के संगीत और राजेन्द्र कृष्ण के बोलों ने फिल्म को भावनात्मक गहराई दी:
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“ओ नन्हे से फरिश्ते, तुझे सलाम करते हैं” आज भी हर मां-बाप की आंखें नम कर देता है।
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“तुझको पुकारें मेरे गीत रे” रोमांस और विरह का क्लासिक संगम है।
निर्देशन और भावनात्मक पकड़
राज खोसला ने बेहद संवेदनशील मुद्दे — एक बच्चा, दो पिता — को बिना मेलोड्रामा के बहुत परिपक्वता से दिखाया। कहानी भले ही त्रिकोणीय प्रेम को लेकर हो, लेकिन इसमें त्याग और रिश्तों की गरिमा ही मुख्य विषय है।
क्यों आज भी देखना चाहिए?
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अगर आप ऐसी फिल्में पसंद करते हैं जो आपको रुला भी दें और मुस्कुरा भी, तो यह क्लासिक आपके लिए परफेक्ट है।
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यह फिल्म याद दिलाती है कि बॉलीवुड में कभी ऐसी कहानियां भी बनती थीं जिनमें भावनाओं की सच्चाई होती थी, सिर्फ ग्लैमर नहीं।
‘एक फूल दो माली’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि त्याग, प्रेम और रिश्तों की परीक्षा है। यह उन गिनी-चुनी फिल्मों में से है जो समय के साथ और निखरती हैं। अगर आप रेट्रो फिल्मों के दीवाने हैं तो इसे अपनी वॉचलिस्ट में आज ही शामिल करें।
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