
2014 के लोकसभा चुनावों में छांगुर बाबा उर्फ जलालुद्दीन, माफिया अतीक अहमद का प्रचार करते मंच-मंच घूमते दिखे। समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे अतीक के लिए बाबा ने वोट मांगे — शायद ये सोचकर कि चमत्कार से नतीजा बदल जाएगा। पर बीजेपी के दद्दन मिश्रा ने चमत्कार से पहले ही खेल खत्म कर दिया।
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धर्मांतरण इंडस्ट्री का CEO निकला बाबा
जांच एजेंसियों के मुताबिक, बाबा सिर्फ प्रवचन नहीं देता था — वो तो पूरा “धर्मांतरण सिंडिकेट” चला रहा था। विदेशों से 100 करोड़ की फंडिंग, 18 बैंक अकाउंट्स, फर्जी ट्रस्ट, और ISI से कथित संपर्क तक। कह सकते हैं कि बाबा ‘मेड इन इंडिया’ नहीं, ‘फंडेड फ्रॉम अब्रॉड’ ब्रांड निकला।
आलीशान कोठी से बुलडोजर तक का सफर
बलरामपुर की उसकी कोठी पर जब बुलडोजर चला, तब समझ आया कि ‘आस्था का आश्रम’ असल में रियल एस्टेट स्कैम का ठिकाना था। 93 लाख की सरकारी जमीन को नीतू के नाम कर बाबा ने प्लॉटिंग शुरू कर दी थी। आध्यात्मिक नहीं, प्रॉपर्टी डीलर बाबा!
राजनीतिक संरक्षण का ‘आशीर्वाद’
बीजेपी नेता दद्दन मिश्रा का कहना है कि छांगुर बाबा जैसे लोग पिछली सरकारों की छाया में फले-फूले। यानी बाबा का ‘अध्यात्म’ वहां तक सीमित नहीं था — मंच से लेकर मंत्रालय तक नेटवर्क था। अब जब कार्रवाई हो रही है, तो कई नेताओं की नींद उड़ गई है।
“लव-जिहाद से लेकर ISI तक” – सबकुछ बाबा के ‘प्रवचन’ में!
बाबा पर युवतियों को प्रेमजाल में फंसाकर धर्मांतरण करवाने, रेप और ब्लैकमेलिंग के भी आरोप हैं। मतलब, बाबा आध्यात्म नहीं, Netflix का क्राइम थ्रिलर बन चुका है। बस फर्क इतना कि इसमें इंटरवल नहीं है — सीधे ED की एंट्री है।
छांगुर बाबा की कहानी बताती है कि कैसे ‘आस्था’ की आड़ में कारोबार, राजनीति और अपराध का गठजोड़ पलता है। अब जब जांच एजेंसियां सक्रिय हैं, तो उम्मीद है कि सिर्फ बाबा ही नहीं, उनके आशीर्वाद देने वाले नेताओं की भी बुकिंग पक्की हो।