ईरान पर बम, मुस्लिम देश गरम! क्या तीसरा मोर्चा खुलेगा?

Saima Siddiqui
Saima Siddiqui

22 जून 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की कि अमेरिका ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों — फ़ोर्दो, नतांज़ और इस्फ़हान — पर हवाई हमले किए। ट्रंप ने एक्स पर लिखा कि फ़ोर्दो पर “बमों की पूरी खेप” गिराई गई और सभी विमान सुरक्षित लौट आए।

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यह हमला उस समय हुआ जब अमेरिका और ईरान के बीच वर्षों बाद परमाणु समझौते पर बातचीत फिर से शुरू हो रही थी।

देशों की तीखी प्रतिक्रिया: “अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन”

अमेरिका की इस सैन्य कार्रवाई की चौतरफा आलोचना हुई है, विशेष रूप से मुस्लिम और अरब देशों की तरफ़ से। कई देशों ने इसे संप्रभुता का हनन, संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन, और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बताया है।

सऊदी अरब: कूटनीति का रास्ता अपनाने की अपील

सऊदी अरब ने कहा कि वह घटनाक्रम पर गहरी नजर बनाए हुए है और अमेरिका द्वारा ईरान की संप्रभुता का उल्लंघन निंदनीय है। विदेश मंत्रालय ने 13 जून के बयान को दोहराते हुए वैश्विक समुदाय से तनाव कम करने के लिए राजनीतिक समाधान की कोशिशों को तेज़ करने की अपील की।

क़तर: तनाव बढ़ा तो होगा ‘विनाशकारी असर’

क़तर ने हमलों को लेकर गंभीर चिंता जताई और कहा कि अगर सभी पक्ष संयम नहीं बरतते तो इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ सकता है। क़तर ने सभी सैन्य कार्रवाइयों को तुरंत रोकने और कूटनीति को प्राथमिकता देने की मांग की।

ओमान: ‘हमला गैरक़ानूनी, अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन’

ओमान के विदेश मंत्रालय ने अमेरिका की कार्रवाई को अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के खिलाफ बताया। ओमान ने कहा कि शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम विकसित करने का हर देश को अधिकार है और परमाणु ठिकानों पर हमले पर्यावरणीय जोखिम पैदा करते हैं।

इराक़: क्षेत्रीय स्थिरता के लिए गंभीर ख़तरा

इराक़ ने अमेरिका की सैन्य कार्रवाई को “मध्य पूर्व की शांति और सुरक्षा के लिए ख़तरा” बताया। उन्होंने कहा कि ऐसे हमले संप्रभुता और अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं और पूरे क्षेत्र को अस्थिर कर सकते हैं।

पाकिस्तान: ‘ईरान को आत्मरक्षा का अधिकार’

पाकिस्तान ने कहा कि यह हमला इसराइल के सिलसिलेवार हमलों के बाद हुआ और इससे क्षेत्र में तनाव और बढ़ सकता है। पाकिस्तान ने जोर देकर कहा कि ईरान को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत आत्मरक्षा का वैध अधिकार है।

मिस्र और लेबनान: ‘सैन्य नहीं, कूटनीतिक समाधान चाहिए’

मिस्र ने चेतावनी दी कि यह हमला क्षेत्र को अराजकता की ओर धकेल सकता है। उसने सैन्य नहीं बल्कि राजनीतिक समाधान की वकालत की। लेबनान के राष्ट्रपति जोसेफ़ आउन ने भी यही चिंता जताई और कहा कि इससे कई देशों की सुरक्षा और स्थिरता पर असर हो सकता है।

ईरान का जवाब: ‘बातचीत का रास्ता अमेरिका और इसराइल ने बंद किया’

ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराग़ची ने कहा कि पहले इसराइल और अब अमेरिका ने बातचीत की संभावनाएं खत्म कर दी हैं। उन्होंने कहा, “हम बातचीत की मेज़ से कभी हटे ही नहीं — सवाल यह है कि अब वहां लौटें कैसे?”

क्या अब युद्ध टालना मुश्किल है?

इस पूरे घटनाक्रम ने दुनिया को एक नाजुक मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। अमेरिका की कार्रवाई, इसराइल की पूर्ववर्ती हमलावर नीति और ईरान की जवाबी धमकियों ने एक ऐसा माहौल बना दिया है जिसमें कूटनीति की आवाज़ दबती जा रही है।

अब सबकी निगाहें विश्व शक्तियों, खासकर संयुक्त राष्ट्र, चीन, रूस और भारत पर हैं — जो मध्यस्थ बन सकते हैं या संकट को और गहरा भी कर सकते हैं।

ईरान पर अमेरिका के हमले ने न सिर्फ एक भूराजनीतिक संकट को जन्म दिया है, बल्कि मुस्लिम देशों की एकजुट प्रतिक्रिया से यह साफ हो गया है कि अब अमेरिका और इसराइल की हर कार्रवाई पर वैश्विक नजर बनी हुई है।

क्या यह तीसरे मोर्चे की आहट है या कूटनीति आखिरी मौके पर जीत जाएगी — इसका उत्तर आने वाले हफ्तों में सामने आएगा।

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