
ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनेई ने एक भावुक लेकिन रणनीतिक बयान देकर अपनी क़ौम से साहस और एकजुटता बनाए रखने की अपील की है।
उन्होंने कहा, मैं अपनी अज़ीज़ क़ौम से कहना चाहता हूँ कि अगर दुश्मन यह महसूस करे कि आप उससे ख़ौफ़ज़दा हैं, तो वह आपको कभी भी आज़ादी से जीने नहीं देगा। जिस अज़्म और हौसले से आपने अब तक मुक़ाबला किया है, उसे और ताक़त के साथ जारी रखिए।
यह वक्तव्य सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि एक सशक्त संदेश है — कि डर के आगे घुटने टेकना, दुश्मन को और ज़्यादा ताक़तवर बना देता है।
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सियासी संदर्भ: क्यों अभी दिया गया ये बयान?
ईरान इस समय एक बड़े भू-राजनीतिक तनाव में फंसा हुआ है। इज़राइल के साथ जारी टकराव, अंतरराष्ट्रीय दबाव और देश के अंदरूनी असंतोष के बीच यह बयान एक मनोवैज्ञानिक और कूटनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल हुआ लगता है। खामेनेई अपनी जनता को न केवल हिम्मत बंधा रहे हैं, बल्कि दुनिया को यह भी बता रहे हैं कि ईरान डरने वालों में से नहीं है।
मनोवैज्ञानिक युद्ध का हिस्सा?
ऐसे बयान आम तौर पर ‘साइकोलॉजिकल वारफेयर’ का हिस्सा होते हैं। जब किसी राष्ट्र को बाहरी हमले या प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है, तो वहां की लीडरशिप अक्सर ऐसे शब्दों के ज़रिए जनता का मनोबल बढ़ाने की कोशिश करती है। यह एक तरीके से जनता के भीतर ‘हम बनाम वे’ वाली भावना को भी मज़बूत करता है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और असर
इस बयान को इज़राइल, अमेरिका और उनके सहयोगी देशों द्वारा संजीदगी से लिया जाएगा। यह दर्शाता है कि ईरान अब और अधिक दबाव या डर के नीचे नहीं झुकेगा। इससे पश्चिमी देशों की मध्य पूर्व नीति पर भी असर पड़ सकता है।
संदेश के भीतर छिपी रणनीति
इस वक्तव्य का सबसे अहम पहलू यह है कि खामेनेई ने “दुश्मन” का नाम नहीं लिया। इससे यह संकेत मिलता है कि यह बयान सिर्फ किसी एक देश के खिलाफ नहीं, बल्कि उन सभी ताक़तों के खिलाफ है जो ईरान की संप्रभुता पर सवाल उठाते हैं।
शब्दों से भी चलती है जंग
अली खामेनेई का बयान केवल भाषण नहीं, बल्कि एक रणनीतिक चाल है जो मनोबल, कूटनीति और सैन्य स्थिति – तीनों स्तरों पर काम करती है। यह दर्शाता है कि जब दुश्मन ताक़त दिखाए, तो जवाब हौसले से दिया जाए – और यही संदेश ईरानी जनता को देने की कोशिश की गई है।
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