
देश में एक बार फिर कोविड-19 के मामले चिंताजनक गति से बढ़ रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार, 12 जून 2025 तक देश में सक्रिय मामले 7,131 तक पहुंच चुके हैं। इस बार संक्रमण की जड़ें नए ओमिक्रॉन उप-वेरिएंट्स JN.1, NB.1.8.1, LF.7 और XFC में पाई गई हैं — जो दिखने में तो “हल्के” हैं, पर फैलने की रफ्तार Formula-1 जैसी है!
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हल्के लक्षण, लेकिन लापरवाही भारी पड़ेगी
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भले इन वेरिएंट्स को ‘निगरानी में रखे गए’ की श्रेणी में रखा हो, पर भारत में विशेषज्ञ बार-बार आगाह कर रहे हैं:
“लक्षण हल्के हैं” सुनकर मत बहकिए, क्योंकि
संक्रमण की रफ्तार दुगनी है,
बुजुर्गों और बीमार लोगों के लिए यह अभी भी जानलेवा है।
अभी भी सुधर जाएं वरना ‘कोरोना पार्ट 3’ तैयार है
देश की जनता को ये समझना होगा कि ये केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है।
हर बार “सरकार ने क्या किया?” पूछने से पहले खुद से पूछिए –
“मैंने क्या सावधानी बरती?”
मास्क पहनना, हाथ धोना, भीड़ से दूरी – ये कोई रॉकेट साइंस नहीं है, लेकिन हम ‘हीरो’ बनने के चक्कर में ये तीन चीजें भी नहीं करते।
कोरोना हॉटस्पॉट: केरल, दिल्ली और महाराष्ट्र सबसे ज्यादा प्रभावित
केरल: 2,055 एक्टिव केस – यानी वहां स्थिति बेहद संवेदनशील है
पश्चिम बंगाल: 747 केस
दिल्ली: 714 केस – राजधानी में सतर्कता की सख्त जरूरत
महाराष्ट्र: 629 केस और अब तक 21 मौतें
गुजरात की स्थिति भी तेजी से बिगड़ रही है – पिछले 24 घंटे में 1,358 नए केस और 2 मौतें। क्या अब भी आपको लगता है कि मास्क पहनना “बहुत ज्यादा” हो जाएगा?
मौतों का आंकड़ा फिर डराने लगा है
1 जनवरी 2025 से अब तक देश में 78 मौतें कोविड-19 के कारण हो चुकी हैं।
दिल्ली में एक ही दिन में 8 मौतें,
महाराष्ट्र में 21,
और कर्नाटक में 11 मौतें दर्ज की गईं।
खासकर वे लोग जो पहले से किसी बीमारी से जूझ रहे हैं, उनके लिए कोविड आज भी खतरनाक है।
कुछ राज्य अब भी संभले हुए हैं, लेकिन कब तक?
हालांकि कर्नाटक (395), उत्तर प्रदेश (251), और तमिलनाडु (220) में मामले कम हैं, लेकिन अगर यही रफ्तार रही तो यहां भी हालात बिगड़ सकते हैं। वायरस अब मौसमी बीमारी जैसा रूप ले रहा है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वह लाइलाज नहीं है।
सख्त चेतावनी
“बुजुर्गों, बच्चों और कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों को लेकर विशेष सतर्कता बरती जाए।”
“मास्क लगाएं, अनावश्यक बाहर न निकलें, और अगर लक्षण दिखें तो खुद ही जांच कराएं।”
यह समय फिर से ‘जन-जागरूकता’ का नहीं, ‘जन-जिम्मेदारी’ का है।
एक राहत की खबर – ठीक होने वालों की संख्या बढ़ी, लेकिन…
देश में अब तक 10,976 लोग स्वस्थ होकर लौट चुके हैं। यह भले ही राहत की बात है, लेकिन यह आंकड़ा हमें लापरवाह नहीं बनाता।
भूलिए मत – पहली लहर में भी हमने यही सोच कर ढील दी थी, और दूसरी लहर ने सबको झकझोर दिया था।
जागो भारत, जागो – वरना फिर पछताना पड़ेगा!
कोविड भले अब “नया नहीं” रहा हो, लेकिन हमारी लापरवाही अब भी उतनी ही पुरानी है। सरकार गाइडलाइन जारी कर सकती है, लेकिन पालन तो हमें ही करना होगा।
तो अगली बार जब मास्क पहनने से आपको ‘गर्मी’ लगे या हाथ धोने में ‘पानी की बर्बादी’ दिखे, तो एक नजर उन ICU बेड्स की तस्वीरों पर डालिए जहां आपकी लापरवाही किसी और की जान ले सकती है।
“बचना है तो बदलना पड़ेगा — और अब भी नहीं बदले, तो फिर वही पुराना लॉकडाउन, वही सांस की तंगी और वही अफसोस हमारे दरवाजे पर खड़ा मिलेगा।”
कैप्टन सुमित सभरवाल – रिटायरमेंट से पहले आखिरी उड़ान… और आखिरी सांस