अब खून भी नहीं बहेगा और पानी भी नहीं मिलेगा, बोलेगा पाकिस्तान – हाय सिंधु

अमित तिवारी
अमित तिवारी

आतंकी हमले के बाद भारत ने न सिर्फ सैन्य स्तर पर कड़ा रुख अपनाया, बल्कि कूटनीतिक मोर्चे पर भी पाकिस्तान को सीधा संदेश दिया—“खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते”। इस बयान के साथ ही भारत ने 1960 की सिंधु जल संधि को सस्पेंड करने का ऐलान कर दिया, जिससे पाकिस्तान में हड़कंप मच गया है।

क्या है सिंधु जल संधि और क्यों है विवाद?

1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से यह संधि हुई थी। इसमें भारत ने तीन पूर्वी नदियों (ब्यास, रावी, सतलज) का जल अपने लिए और तीन पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) का जल पाकिस्तान को उपयोग के लिए देने का समझौता किया था।

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यह संधि “गुडविल और फ्रेंडशिप” की भावना से की गई थी। लेकिन आज पाकिस्तान की ओर से सीमा पार आतंकवाद को समर्थन देना, इस समझौते की मूल आत्मा के खिलाफ माना जा रहा है।

आतंकी हमलों के बाद कूटनीतिक पलटवार

भारत ने स्पष्ट कहा है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद पर लगाम नहीं लगाता, तब तक ना व्यापार होगा और ना ही पानी बहाया जाएगा। पाकिस्तान ने भारत को 4 पत्र लिखकर संधि को बहाल करने की अपील की, लेकिन भारत ने साफ इनकार कर दिया।

पाकिस्तान में संकट: पीने का पानी और फसलें खतरे में

सूत्रों के मुताबिक, अगर सिंधु जल संधि पर अमल नहीं होता तो पाकिस्तान में रबी की फसलें प्रभावित होंगी और पीने के पानी की किल्लत हो सकती है। खासकर पंजाब और सिंध की खेती पर गंभीर असर पड़ेगा। यह एक भू-राजनीतिक जल संकट की ओर इशारा करता है।

भारत की तैयारी: सिंधु जल को लेकर नई जल परियोजनाएं

भारत अब अपने हिस्से के पानी का अधिकतम उपयोग करने के लिए दीर्घकालिक परियोजनाएं बना रहा है। इसमें ब्यास नदी से पानी को गंग नहर तक पहुंचाने के लिए 130 किलोमीटर लंबी नहर बनाई जा रही है। साथ ही 12 किलोमीटर सुरंग और यमुना लिंक की योजना भी है। इससे दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान को भारी लाभ होगा।

दुनिया की प्रतिक्रिया: भारत का स्टैंड क्लियर

कुछ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान ने भारत के इस निर्णय का मुद्दा उठाने की कोशिश की, लेकिन भारत के प्रतिनिधियों ने यह दो-टूक कहा कि संधि का आधार ही “गुड फेथ” था, जिसे पाकिस्तान ने खुद तोड़ा है। विश्व बैंक ने भी दखल से साफ इनकार कर दिया।

क्या सिंधु जल संधि फिर से बनेगी? भारत की नई सोच

भारत अब इस संधि को 21वीं सदी के जरूरतों के मुताबिक रिनिगोशिएट करने की योजना बना रहा है। जलवायु परिवर्तन, ग्लेशियरों का पिघलना और जनसंख्या वृद्धि को ध्यान में रखते हुए भारत अब एक नए फ्रेमवर्क की बात कर रहा है।

पाकिस्तान की अड़चनें और भारत की प्राथमिकता

पाकिस्तान बार-बार इस संधि को फिर से शुरू करने की बात करता है लेकिन हर बार अड़चनें डालता है। अब भारत का कहना है कि यह “पुराने ज़माने की इंजीनियरिंग” से बनी संधि है, जो आज के भू-राजनीतिक और पर्यावरणीय संदर्भ में उपयुक्त नहीं है।

जब पानी भी बन गया पॉलिटिकल वेपन

भारत का रुख अब स्पष्ट है—संधि हो या संबंध, सब शर्तों पर आधारित होंगे। सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार करके भारत यह दिखा रहा है कि अब नीतियां न केवल “नदी” की धारा देखेंगी, बल्कि “रक्त की धाराओं” को भी ध्यान में रखेंगी।

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