
ग़ज़ा सिटी एक बार फिर मातम में डूब गया है। रविवार रात हुए इसराइली हवाई हमले में 50 से अधिक लोगों की मौत की पुष्टि हुई है। इस बार निशाना बना एक स्कूल, जहां विस्थापित फिलिस्तीनी परिवार शरण लिए हुए थे।
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स्कूल या कमांड सेंटर? इसराइली सेना का बयान
इसराइली सेना ने कहा है कि उन्होंने उन “लड़ाकों” को निशाना बनाया जो स्कूल के भीतर कमांड सेंटर चला रहे थे।
सेना का दावा है कि हमला एक सटीक सैन्य कार्रवाई थी, जिसमें हमास के सदस्य मारे गए।
लेकिन इस बीच जो तस्वीरें और ज़मीनी हकीकत सामने आ रही है, वो कुछ और ही बयान कर रही हैं।
कितने मरे, कौन मरा? फिलिस्तीनी एजेंसियों का आरोप
ग़ज़ा में हमास द्वारा संचालित नागरिक सुरक्षा एजेंसी का कहना है कि हमले में बच्चों समेत दर्जनों नागरिकों की मौत हुई। “स्कूल में विस्थापित महिलाओं, बच्चों और बुज़ुर्गों ने शरण ले रखी थी। वहां कोई हथियार नहीं थे, सिर्फ़ रोटियां और उम्मीदें थीं।”
30 से अधिक मौतें सिर्फ स्कूल में, जबकि एक अन्य हमले में 19 लोगों की मौत की पुष्टि की गई है।
‘लक्षित हमले’ और नागरिक हताहत – किसका सच भारी?
एक ओर इसराइली सेना अपने “लक्ष्यबद्ध” हमलों की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर सैकड़ों फिलिस्तीनी नागरिक मलबे में दबे हुए, और अस्पताल लाशों से भरे पड़े हैं।
मानवाधिकार संकट की ओर बढ़ते क़दम
ग़ज़ा में लगातार हो रहे हवाई हमले और नागरिक ठिकानों पर बमबारी अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए गंभीर चिंता का विषय बनते जा रहे हैं। स्कूल, अस्पताल और शरणार्थी कैंप अब युद्ध के “संभावित लक्ष्य” बनते दिख रहे हैं।
ग़ज़ा में जो हो रहा है, वो केवल एक सैन्य संघर्ष नहीं रह गया। यह मानवता की परीक्षा बन चुका है। जब स्कूल सुरक्षा नहीं दे सकते, और कमांड सेंटरों की परिभाषा धुंधली हो जाए — तब ज़रूरत होती है दुनिया की आंखें खोलने की, और जवाबदेही तय करने की।
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