
कांग्रेस ने केंद्र की मोदी सरकार से सवाल किया है कि क्या वह पहलगाम आतंकी हमले की उसी तरह समीक्षा कराएगी, जैसी 1999 के कारगिल युद्ध के बाद की गई थी। इसके साथ ही कांग्रेस ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक बुलाने और संसद का विशेष सत्र जल्द आयोजित करने की भी मांग दोहराई है।
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जयराम रमेश ने क्या कहा?
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा:
“कारगिल युद्ध खत्म होने के तीन दिन बाद वाजपेयी सरकार ने ‘कारगिल समीक्षा समिति’ बनाई थी। इसकी रिपोर्ट फरवरी 2000 में संसद में रखी गई थी। क्या मोदी सरकार भी ‘पहलगाम’ की घटना पर ऐसी कोई समिति बनाएगी, भले ही एनआईए जांच कर रही हो?”
उन्होंने यह भी याद दिलाया कि उस समिति के अध्यक्ष के. सुब्रह्मण्यम थे, जो मौजूदा विदेश मंत्री एस. जयशंकर के पिता थे।
ट्रंप के बयान ने और बढ़ाया मामला
जयराम रमेश की टिप्पणी ऐसे समय आई है जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह दावा किया कि उनके कार्यकाल में भारत-पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध को उन्होंने टाल दिया था।
ट्रंप ने कहा:
“हमने युद्धविराम कराया और एक बड़ा परमाणु टकराव रोका। अगर युद्ध बंद करोगे तो व्यापार होगा, नहीं तो कुछ नहीं।”
कांग्रेस ने ट्रंप के इस बयान पर भी सवाल खड़ा करते हुए कहा कि अगर ऐसी घटनाएं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चर्चा का विषय बन रही हैं, तो भारत सरकार को पारदर्शिता दिखानी चाहिए।
भारत सरकार की प्रतिक्रिया क्या है?
भारत सरकार के सूत्रों ने स्पष्ट किया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच 2021 में जो युद्धविराम समझौता हुआ, वह दोनों देशों के डीजीएमओ (सेना प्रमुख) के आपसी संवाद से हुआ था और कोई तीसरी पार्टी शामिल नहीं थी।
सरकार ने ट्रंप के दावे को महत्व न देते हुए इसे राजनीतिक वक्तव्य करार दिया है।
कांग्रेस की दो प्रमुख मांगें
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प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक आयोजित की जाए ताकि सभी राजनीतिक दलों को विश्वास में लिया जा सके।
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संसद का विशेष सत्र जल्द से जल्द बुलाया जाए, ना कि दो-तीन महीने बाद।
कांग्रेस का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की सुरक्षा और रणनीतिक स्थिति को लेकर हो रही चर्चाओं के बीच, लोकतांत्रिक संवाद जरूरी है।
सिर्फ एनआईए जांच काफी नहीं?
जहां एक ओर सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों पर भरोसा दिखा रही है, वहीं विपक्ष एक संसदीय जांच और राजनीतिक विमर्श की मांग कर रहा है।
पहलगाम की घटना हो या ट्रंप का दावा— सवाल उठ रहे हैं कि क्या सरकार जवाबदेही और पारदर्शिता दिखाएगी, या फिर यह मुद्दा भी राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप में खो जाएगा?
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