
बांग्लादेश की सियासत आज उस वक्त भारी हो गई जब इक़बाल मंच के युवा नेता उस्मान हादी को सुपुर्द-ए-खाक किया गया। मणिक मिया एवेन्यू से लेकर कब्रिस्तान तक मानो जनसैलाब उमड़ पड़ा। हजारों लोग—युवा, बुजुर्ग, छात्र और सामाजिक कार्यकर्ता—हादी को आख़िरी सलाम देने पहुंचे।
“इंसाफ चाहिए” के नारों से गूंजा इलाका
जनाजे के दौरान सिर्फ आंसू नहीं थे, बल्कि इंसाफ के नारे भी थे। भीड़ का साफ संदेश था— “हादी की शहादत को बेकार नहीं जाने देंगे।”
यह जनाजा सिर्फ एक धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि राजनीतिक चेतावनी भी बन गया।
मोहम्मद यूनुस की मौजूदगी ने बढ़ाया सियासी वजन
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस खुद नमाज़-ए-जनाज़ा में शामिल हुए। उनके साथ कई वरिष्ठ सरकारी अधिकारी भी मौजूद रहे। राजनीतिक गलियारों में इसे “साइलेंट स्टेटमेंट” के तौर पर देखा जा रहा है।
बड़े भाई ने कराई नमाज़-ए-जनाज़ा
उस्मान हादी के बड़े भाई मौलाना डॉ. अबु बकर सिद्दीकी ने जनाजे का नेतृत्व किया। बाद में हादी को राष्ट्रीय कवि काजी नजरुल इस्लाम की कब्र के पास दफनाया गया—जो अपने आप में प्रतीकात्मक माना जा रहा है।

हत्या से लेकर सिंगापुर तक: पूरा घटनाक्रम
- 12 दिसंबर: ढाका के पलटन इलाके में चुनाव प्रचार के दौरान नकाबपोश हमलावरों ने गोली मारी
- गंभीर हालत में सिंगापुर रेफर
- इलाज के दौरान मौत
अब सवाल यह नहीं कि हमला कैसे हुआ, सवाल यह है— गुनहगार कब पकड़े जाएंगे?
सुरक्षा के कड़े इंतजाम, फिर भी तनाव बरकरार
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए इलाके में हाई अलर्ट सुरक्षा व्यवस्था की गई थी, ताकि हालात बेकाबू न हों। हालांकि माहौल बता रहा था कि गुस्सा दबा है, खत्म नहीं।
बांग्लादेश में अब जनाजे भी बता रहे हैं कि लोकतंत्र जिंदा है, लेकिन खतरे में है।
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