
एक दौर था— जब प्रशांत किशोर से मिलने के लिए बड़े-बड़े नेता बाहर कुर्सियाँ पकड़कर इंतज़ार करते थे।
नीतीश कुमार ने तो उन्हें सीधे सरकार का हिस्सा बनाया, सलाहकार पद दिया, और बिहार की राजनीति के ‘चतुर चाणक्य’ का ताज उनके सिर पर चढ़ गया। धीरे-धीरे PK को यही लगा कि— “इंडिया की राजनीति मुझसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता।”
कॉन्फिडेंस था, लेकिन धीरे-धीरे गुमान हो गया।
PK की राजनीति: Data Perfect, लेकिन Ground Zero
सच ये है कि— डेटा आपकी स्लाइड चमका सकता है। प्रेजेंटेशन को प्रोफेशनल बना सकता है। लीडर्स को सपने दिखा सकता है और पत्रकारों को हेडलाइन दे सकता है। लेकिन…डेटा वोट नहीं दिलाता — भरोसा दिलाता है। और भरोसा जमीन से आता है, Excel sheet से नहीं।
PK ने डेटा में बिहार खोजा,लेकिन जनता ने जमीन में राजनीति ढूँढ़ी।
‘गुमान’ बनाम ‘ग्राउंड रियलिटी’
PK ने सोचा— “मेरे पास डेटा है, माइक्रो प्लानिंग है, अमेरिकन कैम्पेनिंग का तड़का है… जीत पक्की है।”
लेकिन जनता ने कहा— **“बहिया, नेता हम चुनेंगे… स्लाइड नहीं।”**
PK की सबसे बड़ी गलती यही थी कि उन्होंने सोचा कि भारत की राजनीति मैथ्स है। जबकि भारत की राजनीति मैथ्स कम, इमोशन ज्यादा है। यहाँ वोट जाति भी देखता है चेहरा भी देखता है पुरानी यादें भी देखता है और सबसे ज्यादा— अपने नेता की नियत देखता है
PK का मॉडल इन सब में फिट ही नहीं हुआ।
अटल सत्य: डेटा चुनाव जीतता नहीं, नेता जीतता है
PK से हुई गलती बहुत सरल है “Politics is not a spreadsheet.” आप Google Docs में manifesto लिख सकते हैं, लेकिन वोटर booth पर दिल से वोट करता है— PowerPoint देखकर नहीं।
नीतीश से मिला पद,बड़े नेताओं की लाइनें, मीडिया का ताज— सबने PK को हवा दी। लेकिन हवा ज़्यादा मिले तो इंसान उड़ता नहीं…
बह जाता है।
PK ने जो सोचा— “मैं डेटा से पोलिटिक्स पढ़ लूंगा।”
लेकिन जनता ने याद दिलाया— “पोलिटिक्स दिल से चलती है, दिमाग से नहीं।”
PK की स्ट्रैटेजिस्ट इमेज बनाम रियल पॉलिटिक्स
“जहाँ लहर हो, वहाँ PK; जहाँ ज़मीन हो, वहाँ जनता।”
PK की इमेज: मास्टर स्ट्रैटेजिस्ट — लेकिन सिर्फ लहर के साथ
अगर आप प्रशांत किशोर का ट्रैक रिकॉर्ड खोलकर देखें तो एक पैटर्न दिखेगा— PK कभी भी लहर के खिलाफ नहीं गए। वो हमेशा लहर के साथ ही ‘स्ट्रैटेजी गुरु’ बने।

- मोदी वेव — PK ने ब्रांडिंग संभाली
- ममता वेव — PK ने कैंपेन संभाला
- नीतीश वेव — PK ने मैनेजमेंट संभाला
- यूपी में SP–Congress — वहाँ लहर नहीं थी… तो PK का मैनेजमेंट सीधे डूब गया
PK ने हमेशा ट्रेंड-फ्रेंडली पॉलिटिक्स खेली है। जहाँ हवा चल रही हो, PK वही खड़े दिखते थे। लेकिन इस बार हवा नहीं थी… खामोशी थी। और खामोशी का साउंड सिस्टम PK के पास नहीं था।
PK का ‘Data + Branding = Victory’ फॉर्मूला फेल क्यों हुआ?
जनसुराज पर PK ने दांव लगाया— सोचा कि 20 साल का बिहार डेटा बैंक + अमेरिकन स्टाइल कैंपेनिंग + पॉलिटिकल ब्रांडिंग उन्हें सीधे “Game Changer” बना देगा।
लेकिन चलते-चलते जनता ने एक ही लाइन में सारा समीकरण बिगाड़ दिया— “Data अच्छा है… पर वोट विश्वास पर मिलता है।”
बुलबुला फूटा — PK का ‘Exit’ जनता ने करा दिया
दोपहर तक जनसुराज एक भी सीट पर निर्णायक बढ़त नहीं ले सकी। PK को यकीन था कि वो बिहार की राजनीति को ‘disrupt’ करेंगे।
पर ground reality ने बहुत सिंपल जवाब दिया— “Ground पर connect नहीं, तो result में respect नहीं।”
PK की उम्मीदों का गुब्बारा जनता ने बड़ी सहजता से फोड़ दिया। बिना ज़ोर लगाए, बिना लड़ाई किए…बस वोटिंग मशीन ने कहा— “Not Interested.”
रियल पॉलिटिक्स: सोशल मीडिया नहीं… जमीनी कैडर जीतता है
इस चुनाव ने साफ कर दिया— रणनीति, प्रचार, PR, branding… सब ठीक है, लेकिन बिहार में वोट उन्हीं को मिलता है जिनकी पकड़ जमीन पर हो—not just the data sheets.
जनसुराज इस कसौटी पर उतरा ही नहीं— कैडर नहीं, वोटर्स नेटवर्क नहीं, जातीय-सामाजिक आधार नहीं, भरोसा नहीं और सबसे जरूरी— भूगोल की समझ नहीं
PK ने जो मॉडल चलाया, वो पॉलिटिक्स नहीं, प्रेजेंटेशन था।
सियासत का आईना: प्रबंधक आपकी ‘लहर’ में तो साथ हैं… ‘मंझधार’ में गायब
ये चुनाव सिर्फ PK के लिए नहीं, बल्कि हर दल के लिए सबक है— Campaign Managers लहर में ही हीरो बनते हैं। जब आपकी अपनी लहर नहीं होती, तो ये सबसे पहले कूदकर तैर जाते हैं। पार्टी की सबसे बड़ी ताकत उसका कैडर है। जो घर-घर जाता है, जो जातियों को पढ़ता है, जो भरोसा बनाता है, जो चुनाव हारने पर भी पार्टी नहीं छोड़ता।
Election management एक सपोर्ट है… आधार नहीं।
वोट वही देगा, जिसने आपका चेहरा, आपकी नीति, और आपकी नीयत ज़मीन पर महसूस की हो।
PK की राजनीति— कैमरा फ्रेंडली, पर ग्राउंड अनफ्रेंडली
प्रशांत किशोर की यह हार सिर्फ electoral defeat नहीं, political reality-check है। ये बताता है कि— पॉलिटिक्स PowerPoint से नहीं चलती। Campaigning Strategy से नहीं जीतती। और Data Analytics से सरकार नहीं बनती। सरकार उन्हीं को मिलेगी जिनका रिश्ता Data से नहीं, जनता से हो।
“PF का पासवर्ड अनलॉक! बस 6 स्टेप्स में एक्टिवेट करें अपना UAN”
