
यूपी के झाँसी में अपराधी अब “कायदे से जेल” नहीं जाते, बल्कि “स्टाइल में वापसी” करते हैं। एक ज़माने में जेल जाना बदनामी होती थी, अब Instagram रील का मौका है!
इलाहाबाद बैंक चौराहे पर स्थित “मि मिरर स्पा सेंटर” में देह व्यापार के आरोप में गिरफ्तार किए गए आरोपी पंकज को जब जमानत मिली और वह जेल से बाहर निकला, तो समर्थकों ने ऐसा स्वागत किया मानो किसी ने UPSC निकाल लिया हो।
रील बनाओ, कानून को भूल जाओ!
इस स्वागत समारोह में फूलों की माला तो थी ही, साथ ही समाज के “नई सोच” वाले युवाओं की राय भी थी:
“अब इसमें क्या है? देह व्यापार तो अब आम बात है। पैसा दो, कानून फॉलो करो या बायपास करो।”
मज़े की बात ये कि यह सब खुलेआम हो रहा है — वीडियो वायरल, लोग गौरवान्वित।
लेकिन दूसरी ओर, कोर्ट ने दिखाई सख्ती – अपहरण के आरोपी को बेल नहीं मिली!
संतुलन की बात करें तो इसी झाँसी में न्यायपालिका ने एक गंभीर संदेश भी दिया है।
विशेष न्यायधीश POCSO एक्ट, मोहम्मद नेयाज अहमद अंसारी की अदालत ने 14 वर्षीय किशोरी के अपहरण के आरोपी अंकित यादव की बेल याचिका सिरे से खारिज कर दी।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, अंकित ने पहले भी इसी लड़की का अपहरण किया था, केस चल रहा था, समझौता नहीं हुआ तो फिर अपहरण कर लिया।
कोर्ट ने साफ कहा:

“ये केस बेल लायक नहीं है।”
तो अब सवाल ये है…
क्या झाँसी में अपराधियों का नया ट्रेंड बन गया है — जेल जाना, बाहर आना और रील बनाना?
क्या ऐसे स्वागत समाज के लिए एक खतरनाक मैसेज नहीं दे रहे?
और सबसे अहम — क्या अब अपराध का सोशल मीडिया ब्रांडिंग से सम्मान बढ़ता है?
क्या अब अपराध समाज का ‘न्यू नार्मल’ बनता जा रहा है?
जहां एक ओर कोर्ट बच्चों की सुरक्षा के लिए गंभीरता से काम कर रही है, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग अपराध को “फेम का रास्ता” समझ बैठे हैं।
समाज को तय करना है — “क्या हम कानून से डरते हैं या लाइक्स और व्यूज़ से?”
“ये न्याय का तमाशा है या समाज की संवेदनहीनता?”