
एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया — ये तीन छोटे-से देश, जो मिलकर Baltic States कहे जाते हैं, भले ही नक्शे में ज़्यादा जगह न घेरते हों, लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य ताकतों की निगाहें आज इन्हीं पर टिकी हैं।
रूस बार-बार इन देशों की सीमाओं के पास युद्धाभ्यास करता है, विमानों से घुसपैठ करता है और NATO को खुली चुनौती देता है।
बाल्टिक देश इतने अहम क्यों हैं?
लोकेशन, लोकेशन, लोकेशन!
बाल्टिक देश यूरोप और रूस के बीच की आखिरी बफर लाइन माने जाते हैं। ये सीधे Baltic Sea से जुड़ते हैं और Kaliningrad (रूस का सामरिक क्षेत्र) से बेहद नज़दीक हैं।
NATO की फ़ॉरवर्ड फ्रंटलाइन
ये तीनों देश NATO के सदस्य हैं, और अगर रूस इन पर हमला करता है, तो इसे पूरे NATO के खिलाफ युद्ध माना जाएगा (आर्टिकल 5)। यही वजह है कि ये क्षेत्र जियोपॉलिटिक्स का फ्लैशपॉइंट बन चुका है।
Suwalki Gap – रूस की ‘छोटी सी बड़ी ख्वाहिश’
पोलैंड और लिथुआनिया के बीच की 65 किमी लंबी पट्टी, जिसे Suwalki Gap कहते हैं, रूस के लिए रणनीतिक सपना है। इसे कब्ज़ा करने से रूस का Kaliningrad सीधा बेलारूस से जुड़ जाएगा।
रूस की बार-बार निगाहें: बस यूं ही नहीं
जमीन पर तनाव: रूस, लातविया और एस्टोनिया की सीमाओं पर सैनिकों की तैनाती बढ़ा रहा है।
आसमान में ताक-झांक: MiG-31 जैसे लड़ाकू विमानों की घुसपैठ अब आम बात हो गई है।

डिजिटल मोर्चा: रूस पर Cyber Warfare और फेक न्यूज़ फैलाने के भी आरोप हैं।
पुतिन को इन देशों में NATO की मज़बूती और लोकतांत्रिक ढांचा रास नहीं आता। शायद यही वजह है कि रूस बार-बार उन्हें दबाने की कोशिश करता है।
NATO और पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया
NATO ने बाल्टिक देशों में अपने सैनिकों की संख्या बढ़ाई है। फ्रांस, अमेरिका, जर्मनी और ब्रिटेन जैसे देश यहां फॉरवर्ड ऑपरेशनल बेस तैयार कर रहे हैं।
NATO का स्पष्ट संदेश है:
“अगर बाल्टिक को छेड़ा, तो जवाब पूरी ताकत से मिलेगा।”
बाल्टिक देश – बड़े खिलाड़ियों की शतरंज पर सबसे नाजुक मोहरे
आज के समय में बाल्टिक देश सिर्फ़ छोटे राष्ट्र नहीं, बल्कि यूरोपीय सुरक्षा और वैश्विक संतुलन की कुंजी बन चुके हैं। रूस की निगाहें यहां टिकी हैं, लेकिन NATO की दीवारें अभी मज़बूत हैं।
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