
“तिरंगा सिर पर, पगड़ी जट्टा सम्हाल रे!” — ये कोई मेटा-फोर्स डायलॉग नहीं, बल्कि 60s की वो देशभक्ति थी जो आज भी रोंगटे खड़े कर दे।
असेंबली में बम और कैमरे में क्रांति
शुरुआत होती है इंडिया के 1911 से — जहां भगत सिंह अपने चाचा अजित सिंह की गिरफ़्तारी देखता है और बचपन से ही क्रांति का Zoom-Call join कर लेता है। लाला लाजपत राय की मौत हो, या असेम्बली में धमाका, भगत सिंह की एंट्री हैट के साथ होती है — literally! और फिर आती है फांसी की घड़ी — जहां तीनों शहीदों की विदाई सिर्फ इतिहास नहीं, सिनेमा का क्लाइमेक्स बन जाती है।
कलाकारों की परेड: जब एक्टिंग भी आज़ादी के लिए लड़ी
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मनोज कुमार – भगत सिंह के रूप में, देशभक्ति का National Emoji।
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प्रेम चोपड़ा – पहली बार विलेन नहीं, बल्कि सुखदेव बनकर दिल जीतते हैं।
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निरूपा रॉय – इस बार रोती हुई माँ नहीं, बहादुर दुर्गा भाभी बनती हैं।
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प्राण – डाकू केहर सिंह में भी देशभक्ति का तड़का।
संगीत: जब क्रांति के सुर मोहम्मद रफ़ी ने छेड़े
कोई “रंग दे बसंती” बोले या “सरफ़रोशी की तमन्ना”, ये फिल्म वो प्लेलिस्ट है जो Spotify से पहले बनाई गई थी। गीतों में बिस्मिल के शब्द और प्रेम धवन का संगीत मिलकर एक ऐसा ध्वनि बम बनाते हैं जो सीधे दिल में गिरता है।
फिल्म को मिला राष्ट्रीय सम्मान
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हिंदी की सर्वश्रेष्ठ फिल्म — 13वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में।
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नर्गिस दत्त पुरस्कार — राष्ट्रीय एकता को सेलिब्रेट करता हुआ।
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सर्वश्रेष्ठ पटकथा — दीनदयाल शर्मा के नाम, बटुकेश्वर दत्त की कहानी पर।
फिल्म के पीछे की कहानी: जब स्क्रिप्ट खुद क्रांतिकारी ने लिखी
ये कोई काल्पनिक स्क्रिप्ट नहीं — यह वो कहानी है जिसे खुद बटुकेश्वर दत्त ने लिखा। हां, वही साथी जिनके साथ भगत सिंह ने असेम्बली में बम फेंका था। और मज़े की बात, जिस साल फिल्म रिलीज़ हुई — उसी साल उनका निधन भी हुआ। इतिहास को इससे ज़्यादा डार्क ह्यूमर नहीं आता।
सिनेमैटिक फैक्ट: जब बीवी ने ढोलक बजाई और स्क्रिप्ट को जान मिल गई
मनोज कुमार की रियल वाइफ शशि गोस्वामी ने एक सीन में ढोलक बजाई — और वो सीन भगत सिंह की होने वाली बीवी के रूप में फिल्माया गया। Talk about method acting behind the scenes!
ये फिल्म नहीं, इतिहास की रील है
शहीद (1965) सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि वो सेलुलॉइड दस्तावेज़ है जो भगत सिंह की जीवनी को उतनी ही शिद्दत से दिखाता है जितनी से उन्होंने आज़ादी चाही थी। 2025 में बैठकर भी इसे देखो, तो लगेगा देश अभी-अभी आज़ाद हुआ है।
देखनी चाहिए?
अगर देशभक्ति सिर्फ WhatsApp स्टेटस तक सीमित नहीं है, तो Yes Boss! — ये फिल्म ज़रूर देखो।