
उत्तर प्रदेश की सियासत एक बार फिर हंगामेदार मोड़ पर पहुंच गई है। स्वामी प्रसाद मौर्य, जो पहले से ही अपने धर्म और देवी-देवताओं पर विवादित बयानों के लिए सुर्खियों में रहते हैं, इस बार किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस या टीवी डिबेट में नहीं, बल्कि रायबरेली के सारस चौराहे पर थप्पड़ खाकर खबर में आए।
दो युवकों ने स्वागत के बहाने उन्हें माला पहनाई, और फिर पीछे से “थप्पड़ का प्रसाद” दे दिया।
आरोपी कौन हैं और क्यों मारी थप्पड़?
गिरफ्तार किए गए युवकों के नाम हैं:
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रोहित द्विवेदी
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शिवम यादव
इन युवकों ने पुलिस को बताया कि वे सनातन धर्म के अपमान से नाराज़ थे। उनका कहना था कि स्वामी प्रसाद मौर्य हिंदू देवी-देवताओं को भला-बुरा कहते हैं, इसलिए उन्होंने “अपना विरोध प्रकट” किया… और विरोध की ये शैली कुछ ज्यादा ही ‘हाथ में’ चली गई।
पुलिस ने संभाली मोर्चा, समर्थकों ने युवक की पिटाई
घटना के बाद मौर्य के समर्थकों ने एक युवक को मौके पर ही दबोच लिया और जनता कर्फ्यू जैसा कुछ चला दिया। दूसरा युवक भाग निकला, लेकिन जल्द ही गिरफ्तार कर लिया गया। थानाध्यक्ष अजय राय ने पुष्टि की कि युवकों पर कानूनी कार्रवाई की जा रही है।
स्वामी प्रसाद मौर्य का बयान – सीधा हमला योगी सरकार पर
घटना के बाद मौर्य ने प्रेस को संबोधित करते हुए कहा:
“अगर मेरी सुरक्षा में हमला हो सकता है, तो आम आदमी का क्या होगा?”
उन्होंने यूपी में कानून व्यवस्था को गुंडाराज करार दिया और सीएम योगी पर भी हमला बोला:

“योगी खुद कठमुल्ला हैं, क्या अपेक्षा करें उनसे?”
एक तरफ थप्पड़ खाने का दर्द, दूसरी ओर बयानबाजी का गर्मा-गर्मी!
पहले भी ‘जूता प्रकरण’ हो चुका है
ध्यान देने वाली बात ये है कि ये पहली बार नहीं है जब मौर्य को जनता की नाराजगी झेलनी पड़ी हो। इससे पहले भी एक शख्स ने वकील बनकर उनके ऊपर जूता फेंका था।
लगता है जनता के एक वर्ग की नाराजगी अब मोर्चा खोलने लगी है – और वो भी बिना प्रेस कॉन्फ्रेंस के।
राजनीति का लेटेस्ट फॉर्मेट – बयान दो, थप्पड़ लो?
राजनीति में अब मुद्दों से ज्यादा “मारा किसने?” ट्रेंड कर रहा है। इस घटना ने दिखा दिया कि विरोध का नया तरीका अब सोशल मीडिया नहीं, सीधा चांटा मीडिया बन गया है।
जनता पूछ रही है –
“आखिर कब तक नेता भगवानों को घसीटेंगे, और जनता को गुस्सा नहीं आएगा?”
वहीं विपक्ष पूछ रहा है –
“अगर नेता सुरक्षित नहीं, तो जनता कैसे?”
स्वामी प्रसाद मौर्य पर हुआ हमला केवल एक थप्पड़ नहीं, बल्कि सामाजिक ध्रुवीकरण, धार्मिक भावनाओं और राजनीतिक असहिष्णुता का मिला-जुला परिणाम है।
अब देखना ये है कि कानून व्यवस्था इस थप्पड़ को गंभीरता से लेती है या फिर ये भी एक Breaking News बनकर भुला दिया जाएगा।
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