गाज़ा नहीं, पहले देश देखो: हाई कोर्ट की लेफ्ट को लताड़

Ajay Gupta
Ajay Gupta

17 जून को All India Peace and Solidarity Foundation (AIPSF) ने मुंबई के आजाद मैदान में गाजा के समर्थन में प्रदर्शन की इजाजत मांगी थी।
लेकिन मुंबई पुलिस ने “न” कह दिया — और CPI(M) ने इसे अदालत में चुनौती दे दी।

कोर्ट ने क्या कहा?

न्यायमूर्ति रवींद्र वी घुगे ने याचिका को खारिज करते हुए कहा:

“पहले अपने देश की तरफ देखिए, देशभक्त बनिए, यह देशभक्ति नहीं है।”

उन्होंने CPI(M) को यह भी याद दिलाया कि वह भारत की एक रजिस्टर्ड राजनीतिक पार्टी है — तो प्रदर्शन गाज़ा नहीं, गलियों के कचरे पर करो
पार्टी को बाढ़, ड्रेनेज, अवैध पार्किंग जैसे मुद्दे उठाने चाहिए, न कि अंतरराष्ट्रीय टकराव में मोर्चा खोलना चाहिए।

कोर्ट का ‘Permission स्लैम’:

CPI(M) ने खुद परमीशन नहीं मांगी थी, फिर कोर्ट में क्या कर रही थी?
बेंच ने कहा कि “जो पार्टी प्रदर्शन में शामिल भी नहीं थी, वह याचिका क्यों दाखिल कर रही है?”

यानी न्यायपालिका ने सीधे तौर पर “न भूतो, न भविष्यति” स्टाइल में क्लास ले ली।

वकील मिहीर देसाई के तर्क:

CPI(M) के लिए पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मिहीर देसाई ने कहा:

  • विरोध करना हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार है।

  • प्रदर्शन की जगह आजाद मैदान पहले से तय है।

  • पुलिस ने परमीशन सिर्फ इसलिए नहीं दी क्योंकि ये विदेश नीति से असहमति जैसा लगा।

लेकिन कोर्ट ने कहा: “सत्ता की नीति से असहमति जताने के हक का मतलब यह नहीं कि आप राष्ट्रहित के बाहर जाकर पोस्टर लेकर खड़े हो जाएं।”

क्यों चर्चा में है मामला?

  • देश में गाजा को लेकर भावनाएं उबाल पर हैं।

  • लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि प्रदर्शन की सीमा, स्वरूप और प्राथमिकता होनी चाहिए।

Hint: “देशभक्ति का मतलब ट्विटर पर ट्रेंडिंग नहीं, ट्रैफिक की समस्या को उठाना भी हो सकता है।”

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