रेलवे पर ‘नेचर का ब्रेक’: पूर्वोत्तर में प्रोजेक्ट्स को 200 करोड़ की चोट

Lee Chang (North East Expert)
Lee Chang (North East Expert)

भारतीय रेलवे देश को जोड़ने के मिशन पर तो है, लेकिन पूर्वोत्तर की वादियों में इसे एक बेहद “खूबसूरत लेकिन खतरनाक” चुनौती का सामना करना पड़ रहा है — बाढ़ और भूस्खलन!

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने लोकसभा में खुद माना कि बीते 5 वर्षों में प्राकृतिक आपदाओं के चलते 200 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है। और यह नुकसान सिर्फ पटरियों को नहीं, रेलवे के धैर्य को भी हुआ है!

12 प्रोजेक्ट्स, 777 किलोमीटर, और नेचर की क्लास टेस्ट

रेल मंत्रालय के मुताबिक, 1 अप्रैल 2025 तक, पूर्वोत्तर भारत के लिए 12 रेलवे परियोजनाएं (8 नई लाइनें + 4 दोहरीकरण) मंजूर हो चुकी हैं। कुल लंबाई? एकदम सिनेमाई – 777 किमी। और लागत? ₹69,342 करोड़!

अब तक इसमें ₹41,676 करोड़ झोंके जा चुके हैं, लेकिन कई जगह “प्रकृति मैडम” ने खुद मलबा डालकर काम रुकवा दिया।

पहाड़ों से दोस्ती आसान नहीं होती…

रेल मंत्री ने बताया कि पहाड़ी राज्यों जैसे मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड में प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले पूरी भू-तकनीकी जांच होती है। मतलब – ये जानना कि पहाड़ खिसकेंगे या टस से मस नहीं होंगे!

जांच में ढलान, मिट्टी, जल-प्रवाह और वनस्पति कवर तक का डाटा लिया जाता है। फिर प्रोजेक्ट की डिजाइन तैयार होती है ताकि निर्माण के बाद “पहाड़ भी ना रूठे, रेल भी ना छूटे।”

भूस्खलन बोले – “अभी नहीं भाई, अभी तो हम एक्टिव हैं”

रेल मंत्री ने यह भी जोड़ा कि पूर्वोत्तर का भूविज्ञान भूस्खलन के लिए एकदम तैयार बैठा रहता है। यानि जितनी तेजी से रेलवे पटरी बिछाता है, मिट्टी उतनी ही तेजी से कहती है – ‘लाओ, मैं इसे ढक देती हूं।’

जब भारत की रेल मिले पूर्वोत्तर की धरती से, तो मौसम की मर्जी सर्वोपरि है!

रेलवे का मिशन जारी है, लेकिन अब यह सिर्फ लोहे की नहीं, सहिष्णुता और भूगर्भ विज्ञान की पटरी पर भी दौड़ रहा है।

तो अगली बार जब कोई कहे “रेल कब आएगी पहाड़ों में?” तो जवाब दीजिए – “रेल चल रही है, लेकिन पहले प्रकृति की परमिशन ज़रूरी है!”

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