
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज ज़िले के मेजा तहसील अंतर्गत ग्राम रामनगर टेसाहिया का पुरा में ज़मीन पर कब्जे को लेकर एक बेहद गंभीर मामला सामने आया है। और ये कोई मामूली आदमी की ज़मीन नहीं, बल्कि पूर्व सांसद उदित राज और पूर्व विधायक कालीचरण सोनकर के परिवार की ज़मीन है। अब सवाल उठता है—जब पूर्व सांसद की ज़मीन सुरक्षित नहीं, तो आम जनता की सुरक्षा भगवान भरोसे ही सही।
दिन-दर-दिन कार्रवाई या ड्रामा?
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02 जुलाई 2025: लेखपाल कमला पांडेय रिपोर्ट देते हैं—“कोई कब्जा नहीं, कोई आबादी नहीं।”
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12 जुलाई 2025: मेजा थाना में FIR (0375) दर्ज होती है संजय राज, मीनू राज, अशोक राज और कमला देवी के खिलाफ।
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19 जुलाई 2025: वही लेखपाल पलट जाते हैं। अब उसी जमीन पर “18 बिस्वा” की आबादी दिखाई जाती है। (क्या ज़मीन में अचानक अपार्टमेंट उग आए?)
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22 जुलाई 2025: SDM महोदय आदेश देते हैं कि अवैध कब्जा हटाया जाए। लेकिन… गाड़ी वहीं की वहीं।
पुलिस की चुप्पी और भूमाफियाओं की खेती
जब मामला FIR तक पहुंचा और SDM ने पुलिस को कार्यवाही के आदेश दिए—तो उम्मीद थी की अब कुछ होगा। लेकिन क्या हुआ? कब्जाधारी संजय, मीनू और अशोक राज ने ज़मीन पर हल चला दिया, और पुलिस ने सिर्फ अपना सिर हिलाया।
ACP और थानाध्यक्ष का परोक्ष आशीर्वाद?
परिजनों के अनुसार, पुलिस प्रशासन में मौजूद कुछ अफसर—खासकर मेजा के ACP—इस कब्जे को “नोटिस” तो करते हैं, पर “एक्शन” नहीं। भाई, कागज़ों में तो SDM का आदेश है, लेकिन धरातल पर भूमाफिया अपना ट्रैक्टर चला रहा है।
लेखपाल की जादूगरी—”अब दिखे, अब नहीं!”
खसरा संख्या 258 की कहानी जादुई है।
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02 जुलाई को आबादी नहीं।
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19 जुलाई को 18 बिस्वा आबादी उग आती है।
ये रिपोर्ट लेखपाल कमला पांडेय ने दी है, शायद उनके पास ऐसा चश्मा है जो हफ़्ते के हिसाब से हकीकत बदल देता है।
प्रशासन मौन, भूमाफिया तांडव में
पूर्व सांसद के बड़े भाई रामसागर को धमकाया जा रहा है, रास्ता रोका जा रहा है, लेकिन पुलिस हर बार कहती है—“ये तो राजस्व विभाग देखेगा!”
अब बताइए साहब, अगर कल कोई अनहोनी होती है तो जिम्मेदार कौन?
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SDM जो आदेश देकर भूल गए?
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पुलिस जो FIR को गहने की तरह संभाल रही है?
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या वो लेखपाल जो सरकारी कलम से भूमाफिया को खुली छूट दे रहे हैं?
सवाल
Q: क्या इस तरह दो विपरीत रिपोर्ट देना ‘सरकारी जालसाज़ी’ नहीं?
Q: क्या SDM के आदेश के बावजूद कार्रवाई न करना अवमानना नहीं?
सत्ता, सिस्टम और “संपत्ति” का गठजोड़
आज जो हुआ, वो सिर्फ ज़मीन का मामला नहीं है। ये हमारे लोकतंत्र की जमीन हिलाने वाला मामला है। जब प्रशासन की रिपोर्ट हफ्ते में बदलती हो, पुलिस आदेशों को नजरअंदाज करती हो और भूमाफिया खेत जोत रहे हों—तो असल में “कानून की खेती” हो रही होती है।