SIR : 58 लाख नाम कटे, भवानीपुर से ममता को सबसे बड़ा झटका!

Saima Siddiqui
Saima Siddiqui

पश्चिम बंगाल की राजनीति इन दिनों Full Heat Mode में है। वजह है Special Intensive Revision (SIR) की पहली रिपोर्ट, जिसने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी TMC की सियासी बेचैनी साफ तौर पर उजागर कर दी है। चुनाव आयोग की इस संवैधानिक प्रक्रिया के तहत राज्य में लाखों मतदाताओं के नाम ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से हटाए गए हैं—और सबसे बड़ा झटका लगा है ममता के अपने गढ़ भवानीपुर से।

जिस सीट को TMC का “सुरक्षित किला” कहा जाता था, वहां अब सवाल ये है—किला मजबूत है या वोटर ही कम हो गए?

12 States में SIR, लेकिन हंगामा सिर्फ बंगाल में क्यों?

देश के करीब 12 राज्यों में SIR की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन जितना राजनीतिक शोर West Bengal में सुनाई दे रहा है, उतना कहीं और नहीं। ममता बनर्जी ने शुरुआत से ही इस प्रक्रिया का विरोध किया—कभी सड़क पर उतरकर, कभी तीखे बयानों के जरिए।

मामला जब Supreme Court तक पहुंचा, तो कोर्ट ने साफ शब्दों में कह दिया कि SIR एक संवैधानिक अभ्यास है और इसे रोका नहीं जा सकता। इसके बाद भी सियासी तेवर ठंडे पड़ते नहीं दिखे।

58 लाख नाम कटे: Numbers ने बढ़ाई Political Anxiety

रिपोर्ट के मुताबिक, बंगाल में करीब 58 लाख वोटरों के नाम ड्राफ्ट सूची से हटाए गए हैं। कारण बताए गए हैं—

  • Duplicate entries
  • एक से ज्यादा जगह नाम
  • मृत्यु
  • लंबे समय से अनुपस्थित होना

इसके अलावा करीब 12 लाख ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने SIR फॉर्म ही जमा नहीं किया। हालांकि चुनाव आयोग का कहना है कि यह ड्राफ्ट लिस्ट है और claims-objections के दौरान सही वोटरों के नाम दोबारा जोड़े जा सकते हैं।

Bhabanipur Shock: ममता के गढ़ में 45,000 वोट कटे

सबसे बड़ा राजनीतिक झटका आया भवानीपुर विधानसभा सीट से, जहां से खुद ममता बनर्जी विधायक हैं। यहां करीब 45,000 नाम ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से हटाए गए।

यह आंकड़ा TMC के लिए सिर्फ statistics नहीं, बल्कि warning signal है। रिपोर्ट के बाद ममता ने पार्टी कार्यकर्ताओं को निर्देश दिए कि वे door-to-door verification करें और देखें कि कोई वैध वोटर छूट तो नहीं गया।

“Form भरना नाक रगड़ने से भी बदतर” वाला बयान

SIR को लेकर ममता बनर्जी का एक बयान खासा चर्चा में रहा। उन्होंने कहा कि अगर उन्हें फॉर्म भरना पड़ा तो “जमीन पर नाक रगड़ना बेहतर लगेगा।”

इस पर चुनाव आयोग ने clarification दिया कि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री जैसे लोग “marked electors” होते हैं और उनका वोट फॉर्म न भरने से नहीं कटता।

विवाद फॉर्म का नहीं, fear impact का है।

Minority Areas पर खास Focus

भवानीपुर के कुछ वार्ड—70, 72 और 77—में भारी संख्या में नाम कटे हैं। खासकर वार्ड 77, जिसे minority-dominated माना जाता है, वहां जांच ज्यादा सख्त रही।

इन इलाकों में उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा मूल के निवासियों की संख्या भी अधिक है, जिनके दस्तावेजों की कड़ी scrutiny की गई।

24 परगना Top पर: सबसे ज्यादा नाम यहीं हटे

पूरे राज्य में सबसे ज्यादा नाम 24 परगना जिले से हटाए गए हैं—करीब 8 लाख। विपक्ष का आरोप है कि यही वो इलाके हैं जहां लंबे समय से फर्जी दस्तावेज और अवैध घुसपैठ को लेकर सवाल उठते रहे हैं।

TMC इसे “targeted action” बता रही है, जबकि चुनाव आयोग इसे data-based verification कह रहा है।

TMC vs Election Commission: आरोप-प्रत्यारोप जारी

TMC का कहना है कि वैध मतदाताओं को मृत, स्थानांतरित या अनुपस्थित बताकर हटाया गया। वहीं चुनाव आयोग दोहराता रहा है कि January तक claims और objections का समय है, और वैध दस्तावेज होने पर नाम अंतिम सूची में जरूर जुड़ेंगे।

Final voter list फरवरी में जारी की जाएगी।

Political Impact: 2026 Election का Pre-Trailer?

Political analysts मानते हैं कि अगर SIR के जरिए बड़ी संख्या में fake या duplicate voters हटते हैं, तो इसका सीधा असर 2026 विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा। यही वजह है कि ममता बनर्जी इस मुद्दे पर इतनी aggressive नजर आ रही हैं।

“ये कोई ‘खेला’ नहीं, वोटर लिस्ट की सफाई है।”

फिलहाल नजरें final SIR report पर टिकी हैं। क्या बड़ी संख्या में नाम वापस जुड़ेंगे? या ममता बनर्जी की सियासी मुश्किलें और बढ़ेंगी?

आने वाले हफ्ते तय करेंगे कि यह मामला temporary turbulence था या long-term political shift

Nitn Nabin Resigns: National Executive Chief बनते ही मंत्री पद छोड़ा

Related posts

Leave a Comment