
गर्मी का सितम ऐसा है कि बर्फ भी अब ओवर टाइम मांग रही है! और ऐसे में हम इंसान — चप्पल पिघला रहे हैं, एसी से लिपटे पड़े हैं और दिमाग में ‘वाटर पार्क चलें क्या?’ का मच्छर भिनभिना रहा है।
गर्मी का कहर और सुरा का ज़हर: भाई साहब, अभी नहीं तो कभी नहीं!
लेकिन ठहरिए मितरों!
कोरोना चचा फिर से ‘सीन में एंट्री’ मार चुके हैं।
भीगने से पहले सोचिए – पसीने का इलाज कोरोना से महंगा ना पड़ जाए!
वाटर पार्क की सच्चाई:
-
हजारों लोग
-
एक ही पानी
-
एक ही झूला
-
और जी हां, एक ही बिन बुलाए मेहमान – वायरस जी
“सभी लोग मास्क तो छोड़िए, कपड़े भी छोड़ आते हैं… लेकिन वायरस कभी नहीं छूटता!”
कोरोना की वापसी: ‘बैक टु बेसिक्स’ लेकिन इस बार बिन आवाज़ के
2020-21 में हमने जो सीखा, वो अब ‘रिवाइंड मोड’ में आ गया है।
नए वैरिएंट
लक्षणों में बदलाव
टेस्टिंग में ढिलाई
और जनता में बेपरवाही!
अब सोचिए, अगर आप भी “चलो न वाटर पार्क, मज़ा आएगा” कह रहे हैं, तो अगला वाक्य शायद “चलो न डॉक्टर के पास, बुखार आया है” भी हो सकता है।
वाटर पार्क का विकल्प: बाल्टी, पाइप और पापा का ताना
घर में बाल्टी भर लीजिए, पाइप से पानी डालिए और मम्मी से कहिए – “थोड़ा छप-छप कर लें क्या?”
आपको
डायरिया भी नहीं होगा,
डेंगू भी नहीं आएगा,
और कोरोना चचा भी नमस्ते कर के वापस लौट जाएंगे।
पब्लिक सर्विस अनाउंसमेंट – “भीगना है तो खुद की अक्ल में भी भीगिए!”
“गर्मी झेलना मुश्किल है, लेकिन कोरोना झेलना महंगा है।”
अगर वाटर पार्क जाना ज़रूरी है तो:
मास्क लगाकर (कम से कम लाइन में तो)
दूरी बनाकर (कम से कम मस्तिष्क में तो)
और भीगते समय दिल में ये गूंजते हुए:
“हाय कोरोना! तू फिर आ गया?”
वाटर पार्क बाद में, होश पहले!
गर्मी में वाटर पार्क जाने का मन हो तो याद रखिए – वायरस आपके मस्ती के मूड का फैन नहीं है।
वो वही करेगा जो उसे आता है – “लौटना और फैलना!”
तो मितरों,
घर की छत पर बाल्टी लगाइए,
साबुन से पहले सोचिए,
और कोरोना को फिर से मौका मत दीजिए!
तुर्की की मदद पर बवाल: क्या बदल रहे हैं कांग्रेस नेता के सुर?