मंच से धमकी दी थी, अब कोर्ट से सजा मिली – अब्बास का ‘हिसाब’ पूरा

अजमल शाह
अजमल शाह

उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर अदालत की गूंज सुनाई दी है। मऊ सदर विधायक अब्बास अंसारी — जो कभी मंच से “हिसाब करने” की बात करते थे — अब खुद कोर्ट से जवाबदेह हो गए हैं।

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एमपी-एमएलए कोर्ट ने उन्हें आचार संहिता उल्लंघन और हेट स्पीच मामले में दोषी करार देते हुए 2 साल की सजा सुनाई है।
अब सवाल उठ रहा है कि उनकी विधायकी की कुर्सी भी डगमगा सकती है।

क्या है पूरा मामला?

मामला वर्ष 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान का है, जब सुहेलदेव भारत समाज पार्टी के टिकट पर अब्बास अंसारी मऊ से चुनाव लड़ रहे थे।
एक चुनावी जनसभा में उन्होंने मंच से “चुनाव बाद मऊ प्रशासन से हिसाब-किताब करने” और “सबक सिखाने” जैसी बातें कह दीं।

कहते हैं, बोलने से पहले सोचो… लेकिन चुनावी गर्मी में कुछ नेता सोचने की छुट्टी पर चले जाते हैं।

छह धाराएं, एक भाषण और ढेर सारा विवाद

अब्बास अंसारी के खिलाफ 6 धाराओं में मामला दर्ज हुआ:

  • धारा 506: आपराधिक धमकी

  • धारा 153A: समुदायों में वैमनस्य फैलाना

  • धारा 186: सरकारी कार्य में बाधा

  • धारा 189: सरकारी सेवक को धमकाना

  • धारा 171F: चुनाव में गलत प्रभाव

  • धारा 120B: आपराधिक साजिश

इतनी धाराओं में फंसे हैं कि अब सिर्फ चुनावी ‘झंडा’ नहीं, ‘कानूनी चिट्ठा’ भी लहराना होगा।

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सीजेएम डॉ. केपी सिंह की अदालत ने 31 मई को फैसला सुनाया।
अब्बास को दोषी करार दिया गया और दो साल की सजा सुना दी गई।

अब्बास को मंच से “सबक सिखाने” की आदत थी, अब कोर्ट ने उन्हें “सिखाने” की जिम्मेदारी ले ली है।

विधायकी पर मंडराया संकट: क्या अब्बास होंगे अयोग्य?

भारतीय कानून के मुताबिक, अगर किसी विधायक को दो साल या उससे अधिक की सजा होती है, तो उनकी विधायकी स्वतः समाप्त हो सकती है।

मतलब अब मामला सिर्फ अदालत का नहीं, विधानसभा की गलियों का भी हो गया है।

एक वक्त था जब माइक पर गरजते थे, अब अदालत की फाइलें पलटनी पड़ेंगी।

विरोधियों की चुप्पी टूटी, समर्थकों की सांसें अटकी

मुख्तार अंसारी के बेटे होने के नाते अब्बास अंसारी पहले से ही राजनीतिक नजरों में थे।
अब इस सजा के बाद विपक्ष को तंज करने का नया हथियार मिल गया है, और समर्थकों को सफाई देने का नया स्क्रिप्ट।

और जनता? वो पूछ रही है — “नेता तो कहते थे प्रशासन से हिसाब लेंगे, अब खुद कोर्ट से हिसाब क्यों चुकता कर रहे हैं?”

सियासत में जुबान की गर्मी कभी-कभी गले की फांसी बन जाती है

अब्बास अंसारी का ये मामला एक बार फिर साबित करता है कि राजनीति में भाषण देने से पहले संविधान पढ़ लेना चाहिए।

वरना मंच से दिया गया एक “तेज” बयान विधानसभा से बाहर का टिकट बन सकता है।

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