150 साल पूरे ‘वंदे मातरम’ के! देश में गूंजा वही जोश, वही जुनून

सुरेन्द्र दुबे ,राजनैतिक विश्लेषक
सुरेन्द्र दुबे ,राजनैतिक विश्लेषक

भारत के राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ ने पूरे 150 साल पूरे कर लिए हैं! सोचिए — ये वही गीत है जो कभी अंग्रेज़ों को पसीने छुड़ा देता था, और आज भी सुनते ही रोंगटे खड़े कर देता है।

देशभर में इस ऐतिहासिक अवसर पर जश्न का माहौल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘वंदे मातरम स्मरणोत्सव’ की शुरुआत की है — जो पूरे साल मनाया जाएगा।
और हाँ, इस मौके पर एक खास स्मारक डाक टिकट भी जारी किया गया है — क्योंकि 150 साल पूरे करना किसी “इंस्टाग्राम ट्रेंड” जैसा आसान नहीं होता!

कब लिखा गया था “वंदे मातरम”?

इस गीत को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने साल 1875 में लिखा था। बाद में रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे अपनी आवाज़ दी — और 1896 में कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार यह गीत गाया गया।

उस दौर में यह गीत सिर्फ शब्द नहीं था, यह ब्रिटिश राज के खिलाफ “देशभक्ति का साउंडट्रैक” था। अंग्रेज़ों को ये इतना चुभा कि उन्होंने इसे बैन तक कर दिया!

“वंदे मातरम” का अर्थ — सिर्फ शब्द नहीं, भावनाएं हैं!

“वंदे मातरम” का सीधा अर्थ है — “मां, मैं तेरा वंदन करता हूं” या “हे मातृभूमि, तुझे नमन!”

  • “वंदे” = नमन करना
  • “मातरम” = मां या मातृभूमि

यह गीत भारत माता की शक्ति, सुंदरता और महानता का गुणगान है। हर शब्द में ऐसा जोश है कि सुनते ही दिल कह उठता है — “जय मां भारती!”

आज़ादी से आज तक — एक सुर जो कभी नहीं टूटा

आज़ादी के समय, “वंदे मातरम” हर आंदोलन, हर नारे का हिस्सा था। यह गीत सड़कों पर, जेलों में और स्कूलों की असेंबली तक गूंजता रहा। और आज, जब इसके 150 साल पूरे हो चुके हैं — तो एक बार फिर देश उसी जोश से भर उठा है। हर राज्य, हर स्कूल और हर मंच पर “वंदे मातरम” की गूंज सुनाई दे रही है।

आज के दौर में जहाँ रील्स और रैप सॉन्ग्स ट्रेंड करते हैं, वहाँ “वंदे मातरम” अब भी दिलों का असली चार्टबस्टर है।  क्योंकि ये सिर्फ गीत नहीं —
ये वो आवाज़ है, जिससे आज़ादी की सुबह हुई थी…और आज भी यही आवाज़ हर भारतीय की रगों में दौड़ती है।

150 साल बाद भी “वंदे मातरम” उतना ही ताज़ा है जितना किसी नए देशभक्ति गीत की रिलीज़ डेट। क्योंकि गीत बदलते हैं, पर मां के लिए नमन कभी पुराना नहीं होता।

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