ट्रंप की चाल या साजिश? ईरान पर मंडराता इराक वाला खतरा!

Saima Siddiqui
Saima Siddiqui

पिछले कुछ हफ्तों में जिस तरह अमेरिका और ईरान के बीच तनाव बढ़ा है, उसने अंतरराष्ट्रीय राजनीति के पंडितों को सोचने पर मजबूर कर दिया है, क्या अमेरिका एक बार फिर मध्य पूर्व में “रीपीट स्क्रिप्ट” खेलने जा रहा है?

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ट्रंप की विदेश नीति: क्या पैटर्न दोहराया जा रहा है?

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति में अक्सर एक आक्रामक और सैन्य-प्रधान रुख देखने को मिला है। चाहे वो इराक में सद्दाम हुसैन का तख़्ता पलटना हो, अफगानिस्तान में तालिबान से युद्ध, या लीबिया में गद्दाफी का पतन, अमेरिका ने बार-बार हस्तक्षेप किया और हर बार अस्थिरता पीछे छोड़ दी। अब सवाल यह है —क्या ट्रंप का लक्ष्य ईरान को भी उसी राह पर धकेलना है?

 मौजूदा हालात: ईरान को घेरने की रणनीति?

अमेरिका ने हाल ही में ईरान पर नए प्रतिबंध, साइबर हमले और राजनयिक दवाब तेज कर दिए हैं।

इसराइल और ईरान के बीच छिड़े टकराव को अमेरिका रणनीतिक रूप से समर्थन देता नजर आ रहा है।

इसके अलावा, ईरान में डिस्टेबिलाइजेशन के संकेत देने वाले क्लिप्स और सरकारी चैनलों की हैकिंग — एक मनोवैज्ञानिक युद्ध की ओर इशारा करते हैं।

इराक, अफगानिस्तान और लीबिया का उदाहरण

देश अमेरिकी हस्तक्षेप नतीजा
इराक 2003 में आक्रमण अस्थिर सरकार, आईएसआईएस का उदय
अफगानिस्तान 2001 से 2021 तक युद्ध तालिबान की वापसी
लीबिया 2011 में हस्तक्षेप गृहयुद्ध और सत्ता शून्यता

ट्रंप की रणनीति: आंतरिक विरोध या बाहरी दबाव?

विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप फिर से सत्ता में लौटने के लिए एक “राष्ट्रवादी-आक्रोश” वाला नैरेटिव बनाना चाहते हैं। और इसके लिए ईरान जैसे देश पर सख्ती दिखाना उन्हें घरेलू स्तर पर फायदा दे सकता है।

इतिहास चेतावनी दे रहा है

अगर अमेरिका ईरान में वही गलती दोहराता है जो उसने इराक, अफगानिस्तान और लीबिया में की —
तो यह सिर्फ मध्य पूर्व ही नहीं, बल्कि पूरे वैश्विक संतुलन के लिए एक भयावह मोड़ हो सकता है।

भारत और अन्य देशों को भी इस संभावित संघर्ष के आर्थिक, कूटनीतिक और रणनीतिक असर के लिए तैयार रहना चाहिए।

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