
फ़ाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि डोनाल्ड ट्रम्प ने 4 जुलाई को वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की से पूछा था कि अगर यूक्रेन को लंबी दूरी की अमेरिकी मिसाइल मिल जाएं तो क्या वो मॉस्को पर हमला कर सकता है? लेकिन अगले दिन ट्रम्प ने साफ किया – “यूक्रेन को मॉस्को पर हमला नहीं करना चाहिए”
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‘यह सिर्फ एक सवाल था…’, व्हाइट हाउस की सफाई
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव करोलाइन लिविट ने कहा कि ट्रम्प सिर्फ सवाल उठा रहे थे, कोई आदेश नहीं दे रहे थे। उन्होंने फ़ाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट को “क्लिक्स के लिए वर्ड्स को कॉन्टेक्स्ट से बाहर निकालना” बताया ।
50 दिन का अल्टीमेटम: शांतिवार्ता नहीं तो टैरिफ!
ट्रम्प ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन को 50 दिनों के भीतर युद्धविराम पर निगेटिव – वरना भारी टैरिफ का सामना करना पड़ेगा की चेतावनी दी है। उनकी मंशा हो सकती है कि इस डेडलाइन से एक दबाव बनाएँ ताकि बातचीत की पहल हो सके ।
रूस की प्रतिक्रिया: लावरोफ़ ने पूछे कटु सवाल
रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोफ़ ने ट्रम्प के 50 दिन के लक्ष्य पर सवाल उठाए और पूछा, “24 घंटे, 100 दिन – फिर अब 50 दिन? इन सबका क्या मतलब है?”
उन्होंने कहा कि ईयू और NATO का दबाव ट्रम्प पर है, जिससे यह सब बयान आ रहे हैं। उनका दावा है कि यह निर्णय रूस के लिए नई बात नहीं है क्योंकि वे पहले से ‘अभूतपूर्व प्रतिबंधों’ से जूझ रहे हैं।
युद्ध रणनीति और मिसाइल सप्लाई: ट्रम्प की बड़ी दुविधा
ट्रम्प ने एक तरफ़ अमेरिका और NATO की ओर से Patriot मिसाइल सिस्टम देने की घोषणा की, लेकिन यह भी साफ किया कि ‘लंबी दूरी की मिसाइलों’ की योजना फिलहाल नहीं ।

इस बीच मॉस्को तक गहराई से हमले की संभावना पर ट्रम्प ने मना किया –
“नो, ज़ेलेंस्की मॉस्को को टारगेट नहीं करें” ।
परिणाम क्या हो सकता है?
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ट्रम्प की यह नीति मिश्रित सन्देश दे रही है – समर्थन भी दिख़ रहा है, लेकिन सीमित।
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रूस अभी भी जोर-शोर से प्रतिबंध झेलने को तैयार है और लावरोफ़ ने स्पष्ट कर दिया कि ये बयान अभी सिर्फ ‘पॉलिटिकल चेक’ हैं।
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50 दिन का अल्टीमेटम वार्ता को गति दे सकता है, या बस एक प्रोपागेंडा वाला टाइमलाइन साबित होगा।
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