कब्रिस्तान बिजली से नहीं बनता, और गौशाला कब्रों से भी नहीं

सत्येन्द्र सिंह ठाकुर
सत्येन्द्र सिंह ठाकुर

भोपाल के कोलार क्षेत्र में हाईटेक गौशाला की नीयत से शुरू हुआ भूमि पूजन हिंदू–मुस्लिम तनाव का नया पन्ना बन गया। मुस्लिम पक्ष का आरोप—यह जमीन कब्रिस्तान है, और वक्फ बोर्ड इसका हकदार।

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मुस्लिम समुदाय का दावा: यह जमीन कब्रिस्तान है

ऑल इंडिया मुस्लिम त्योहार कमेटी और वक्फ बोर्ड ने दस्तावेज पेश किए और कहा कि यह जमीन नाममात्र कब्रिस्तान के रूप में दर्ज है।

शमशुल हसन बल्ली का आरोप—भू माफिया विधायक रामेश्वर शर्मा की मदद से कब्रिस्तान पर कब्जा करना चाह रहे हैं।

धरने में कुछ लोग कफ़न में सड़क पर लेटकर ‘यह कब्रिस्तान गायब हो रहा’ जैसे नारे लगाने पहुंचे।

बीजेपी विधायक का जवाब: सरकारी जमीन, गौशाला बनेगी

रामेश्वर शर्मा ने कहा कि यह जमीन सरकारी है और 60 साल पहले हिंदू बच्चों को दफनाया गया

उन्होंने मुस्लिम समुदाय को चुनौती दी—“यह आपकी जमीन नहीं है, गौशाला जरूर बनेगी।”

स्थानीय जनता क्या कहती है?

स्थानीय हिंदू निवासी कहते हैं—“यहां कब्रिस्तान कभी नहीं था, बच्चे यहां खुले में खेलते थे।”

उनका समर्थन बीजेपी विधायक और गौशाला के पक्ष में दिखा।

कांग्रेस विधायक का पलटवार

आरिफ मसूद ने कहा—“यह जमीन वक्फ की है, और बीजेपी ने जबरन कब्जा किया है। स्थानीय लोग 15–20 साल से यहां रहते हैं और किसी कब्रिस्तान के निशान नहीं थे।”

क्या अब मुकदमा चलेगा?

मुस्लिम पक्ष ने साफ कह दिया है कि अगर गौशाला नहीं रुकी, तो वे आंदोलन करेंगे, धरना देंगे और कोर्ट भी जाएँगे। गोदी का मुल्याक किया गया — रास्ते में धर्म और जमीन दोनों की लड़ाई तेज़ होने की संभावना कम नहीं।

भू–साक्ष्य की लड़ाई या भू–राजनीति का नया प्रकरण?

कब्र के सैकड़ों निशान नहीं दिखते, लेकिन राजनीतिक भूख साफ दिखती है। गौशाला हो या कब्रिस्तान—भूमि पूजन की जगह क़ानून और तहकीक़ात भी ज़रूरी है। भोपाल के इस भू–नाटक में धर्म से ज्यादा सवाल जमीन पर हैं, और जवाब मिलेंगे कोर्ट की अदालत में ही।

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