
एक 16 साल की लड़की, जो अकेली थी, टूटी थी, और जिसने जीवन में ज़रा-सी मोहब्बत ढूंढने की कोशिश की — उसे एक दिन सुबह-सुबह भीड़ के सामने मोबाइल क्रेन से लटका दिया गया। नाम था – आतेफा साहलेह। जगह – नेका, ईरान। साल – 2004।
उसकी ‘ग़लती’? ईरान की नैतिक पुलिस के मुताबिक, वो ‘चरित्रहीन’ थी। और उसका ‘इनसाफ’? झूठी उम्र दर्ज कर उसे वयस्क साबित किया गया, ताकि मौत की सजा दी जा सके।
ना सिर्फ अपने, भारत अब पड़ोसियों का भी संकटमोचक
ईरानी न्याय तंत्र: जहां जज की ‘ना’ ही अल्लाह का फरमान
बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ‘Execution of a Teenage Girl’ ने पूरी दुनिया को दिखाया कि कैसे आतेफा के केस में जज ने अपने निजी गुस्से को ‘इंसाफ’ का नाम दे दिया। उम्र 16 थी, लेकिन दस्तावेजों में उसे 22 बना दिया गया – ताकि शरिया के कायदे-कानून को कानूनी जामा पहनाया जा सके।
सोचिए, एक ग़लत उम्र, एक निजी दुश्मनी और एक झूठा मुकदमा — और बीच में पिस गई एक लड़की, जिसे बस थोड़ा प्यार चाहिए था।
टूटी हुई ज़िंदगी, जो जुड़ने से पहले ही तोड़ दी गई
मां की मौत, पिता शराबी, घर की जिम्मेदारियों में झुलसती आतीफा दादा-दादी के साथ रहती थी। पर भीतर से वो खाली थी। एक मनोवैज्ञानिक रिपोर्ट में कहा गया – “उसे स्नेह चाहिए था, सजा नहीं।” लेकिन अफ़सोस, प्यार की तलाश में वो ‘चरित्रहीन’ करार दे दी गई।
ईरान और फांसी का रिश्ता: क़ानून कम, क्रेन ज़्यादा
ईरान, चीन के बाद सबसे ज्यादा फांसी देने वाला देश है। पर यहां मौत सिर्फ आतंकवादियों और हत्यारों को नहीं, बल्कि ‘कथित नैतिक गुनहगारों’ को भी मिलती है। यह वो देश है जहां:
औरत का हंसना जुर्म है
स्नेह दिखाना ‘फितना’
और मोहब्बत करना ‘अपराध’
‘मासूम का श्राप’ या सोशल मीडिया की बेचैनी?
अब जब ईरान फिर से जंग के मुहाने पर खड़ा है, आतेफा की कहानी फिर सोशल मीडिया पर लौट आई है। कुछ लोग कह रहे हैं – “ये एक लड़की का श्राप है, जिसने पूरी व्यवस्था को ललकारा था।”
क्या ये सिर्फ एक इत्तेफ़ाक है या वो सिस्टम ही श्रापित है, जो न्याय के नाम पर क्रूरता करता है?
कानून वही जो क्रेन तक ले जाए?
“यहां इंसाफ इतना तेज़ है कि इंसानियत तक पहुंचने का वक्त नहीं मिलता।”
कभी दुपट्टा ढीला हो तो जेल, कभी हंसने की वजह से सज़ा। और अगर आप लड़की हैं, तो बस – हवा में सांस लेना ही अपराध समझिए।
इंसाफ नहीं चाहिए अगर आप ईरान में औरत हैं
आतेफा की मौत एक इंसान की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की हार थी। उसकी कहानी आज फिर जिंदा हो रही है, जंग के साए में, क्योंकि सच कभी मरता नहीं – वो वक्त आने पर चिल्लाता है।