थरूर ने तो पार्टी नहीं बदली, पर कांग्रेस ने नेता बदल डाला!

हुसैन अफसर
हुसैन अफसर

कांग्रेस में रहते हुए शशि थरूर अब धीरे-धीरे “थिंक टैंक” से “थिंक अला-कार्टे” की दिशा में अग्रसर हो चले हैं। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के नाम पर जब केंद्र सरकार ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ भारत का रुख दुनिया को समझाने के लिए एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल तैयार किया, तो उसमें थरूर को कमांडर-इन-चीफ बना दिया गया। दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस ने उनका नाम सुझाया ही नहीं था। और मोदी सरकार ने फिर भी थरूर को चुना — यानी “कांग्रेस से बायपास, थरूर से डायरेक्ट पास!”

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कांग्रेस: जहां थिंकर्स नहीं, सिर्फ सिंकर्स की सुनी जाती है

थरूर की पीड़ा अब शब्दों में कम और संकेतों में ज़्यादा नजर आती है। फरवरी में उनका ट्वीट — “जहां अज्ञानता में सुख है, वहां बुद्धिमान होना बेवकूफी है” — पढ़कर कांग्रेस आलाकमान ने शायद सोच लिया कि थरूर अब भी ज्यादा बुद्धिमान हैं, यानी पार्टी लाइन से बाहर सोचते हैं। और कांग्रेस में “आलाकमान से ऊपर कोई नहीं” का मौन सिद्धांत चलता है।

मोदी सरकार की बाहें खुलीं, थरूर तैयार!

बीजेपी ने मौके पर चौका मारा। न थरूर ने इनकार किया, न बीजेपी ने इशारों को नज़रअंदाज़ किया। और अब जब मोदी सरकार ने उन्हें डेलीगेशन का मुखिया बना दिया है, तो कांग्रेस के भीतर से धीमे स्वर गूंज रहे हैं — “ये तो अपने नहीं रहे!

हाल ही में पीएम मोदी ने तिरुअनंतपुरम की एक सभा में थरूर की तारीफों के पुल बांध दिए थे। ये पुल वंदे भारत से नहीं, वोट भारत से जुड़े हैं। दक्षिण भारत में जहां बीजेपी के पैर फिसल रहे हैं, वहां थरूर जैसे चेहरे एक राजनीतिक क्लच प्लेट बन सकते हैं।

कांग्रेस और थरूर: “साथ तो हैं लेकिन बात नहीं होती”

2022 में कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में थरूर ने मल्लिकार्जुन खड़गे से मुकाबला किया और हार गए। पर शायद तब से थरूर की नजर सिर्फ अध्यक्ष पद पर नहीं, नई भूमिका पर भी है — वो भी पार्टी लाइन के पार

जब पार्टी नहीं सुनती और सत्ता पक्ष सम्मान देता है, तो नेताओं के कदम स्वाभाविक रूप से उस दरवाज़े की ओर मुड़ जाते हैं जहां दस्तक देने पर दरवाजा खुलता है, न कि पोस्टर उतरते हैं।

दक्षिण भारत: क्या थरूर बीजेपी के लिए गुप्त प्रवेश द्वार हैं?

केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना जैसे राज्यों में बीजेपी को थरूर जैसे ‘ग्लोबल, इंग्लिश-प्रेमी, यूएन ग्रेजुएट और राहुल से खफा’ नेता की दरकार है। और थरूर… ठीक वहीं खड़े हैं — उधर कांग्रेस उन्हें नजरअंदाज कर रही है, इधर बीजेपी उन्हें ग्लोबल फ्लाइट्स में भेज रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यदि यह समीकरण और मजबूत होता है, तो दक्षिण में बीजेपी को थरूर के रूप में वह ब्रिज मिल सकता है जो अब तक सिर्फ पार्टी पत्रकों में ही नजर आता था।

थरूर अभी ‘दल’ नहीं बदल रहे, लेकिन ‘दृष्टिकोण’ शायद बदल गया है

शशि थरूर जैसे नेता का पार्टी से मोहभंग होना केवल कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी नहीं है, बल्कि भारत की राजनीतिक वैचारिकी के लिए भी एक आईना है। अगर कांग्रेस अब भी उन्हें सिर्फ ‘असहमत व्यक्ति’ मानकर दरकिनार करती रही, तो अगली बार थरूर संसद में विपक्ष की नहीं, सत्ता पक्ष की बेंच पर दिख सकते हैं — और तब कोई ट्वीट नहीं, सिर्फ वोट जवाब देंगे।

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