
तंज़ानिया में हुए आम चुनावों के बाद लोकतंत्र और लाठीचार्ज दोनों का नया एपिसोड शुरू हो गया है। विपक्षी पार्टी चडेमा (CHADEMA) का दावा है कि सिर्फ तीन दिनों में करीब 700 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं सरकार का कहना है — “सब अफवाह है, देश में सब कुछ सामान्य है।”
जनता पूछ रही है — अगर सब सामान्य है तो फिर इंटरनेट क्यों बंद है?
वोट से ज़्यादा गोली चली, रिपोर्टिंग से ज़्यादा ब्लॉकिंग हुई
देशभर में इंटरनेट बंद कर दिया गया है, जिससे किसी भी आंकड़े की पुष्टि मुश्किल है। विदेशी पत्रकार तंज़ानिया को “डिजिटल ब्लैकआउट ज़ोन” कह रहे हैं।
राजनयिक सूत्रों के अनुसार, कम से कम 500 मौतों की विश्वसनीय जानकारी सामने आई है — यानी हर वोट की कीमत अब जान से चुकानी पड़ रही है।
सरकार का जवाब: “सब कुछ काबू में है” (यानी जनता भी)
सरकार ने हिंसा को “सीमित घटना” बताया है और देशभर में कर्फ्यू बढ़ा दिया है। राष्ट्रपति सामिया सुलुहू हसन की पार्टी सीसीएम (Chama Cha Mapinduzi) पर विपक्षी नेताओं को चुनाव से बाहर करने का आरोप है। एक विपक्षी नेता जेल में हैं, दूसरे को “तकनीकी गड़बड़ी” से चुनाव लड़ने नहीं दिया गया।
विपक्ष का सवाल — “क्या वोट डालना अब गैरकानूनी है?”
विपक्षी नेता ने कहा, “हमने लोकतंत्र के लिए वोट डाला था, अब तानाशाही का डर झेल रहे हैं।” प्रदर्शनकारियों में अधिकतर युवा हैं, जो “रोज़गार नहीं तो न्याय दो” के नारे लगा रहे हैं। अब सवाल ये है कि क्या ये विरोध “विकास” कहलाएगा या “विद्रोह”?

अफ्रीका का लोकतंत्र ICU में है
तंज़ानिया की घटनाएँ पूरे महाद्वीप के लिए चेतावनी हैं। लोकतंत्र की “वोटिंग मशीन” अगर सत्ता के “कंट्रोल रूम” में ही फँस जाए, तो जनता के पास बचता है सिर्फ लॉगआउट बटन।
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