रेट्रो रिव्यू: नदिया के पार – प्रेम, परंपरा और पंखे की पुरानी हवा

1982 में आई फ़िल्म “नदिया के पार” किसी फिल्म से कम और गांव के चबूतरे पर बैठी दादी की कहानी से ज्यादा लगती है।ये फ़िल्म थी उस दौर की जब प्यार आंखों से होता था, मैसेज से नहीं। और शादी तय होती थी तुलसी के पौधे के पास, Tinder पर नहीं। जलेबी, वड़ा पाव और समोसे पर चेतावनी! अगला क्या? चाय पर हेल्थ टैक्स? हीरो: सीधे खेत से निकला देसी क्रश सचिन (चंदन) का किरदार ऐसा जैसे खेत में पैदा हुआ, कसम से ‘ग्लिसरीन’ के बिना भी आंखें नम कर…

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