मैं वक्त हूं, नवाबी दौर की पहचान। मैं खड़ा हूं उसी जगह पर जहां से लखनऊ की तहज़ीब की पहली झलक मिलती है।मैं हूं रूमी दरवाजा। जिसने नवाबों को, अंग्रेजों को, आज़ादी के मतवालों को और अब तुम सबको भी देखा है। लेकिन आज — तुम मुझे देख नहीं रहे हो। तुम मेरी मेहराबों में इतिहास नहीं, बस अपनी SUV और बाइक की जगह ढूंढते हो। “इतिहास की गोद में अब गाड़ियां पल रही हैं” कभी जहां इश्क-ओ-इंकलाब की बातें होती थीं, आज वहां “गाड़ी यहां लगाओ तो साया मिलेगा” जैसी…
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