कई बार जिंदगी हमें एक कंफर्टेबल जगह दे देती है—एक “जीती हुई मथुरा”, जहाँ सब कुछ ठीक चल रहा होता है।लेकिन अगर लक्ष्य कुछ बड़ा है, जैसे Civil Services में जाना, IAS बनना, या समाज में बदलाव लाना…तो फिर उसी कंफर्ट ज़ोन को त्यागना पड़ता है। इसी विचार को एक लाइन में शानदार तरीके से कहा गया है— “बाबू भाई, अपनी द्वारिका बनानी हो तो जीती हुई मथुरा त्यागनी पड़ती है।” यानी अगर सपना बड़ा है, तो कीमत भी बड़ी होगी। Civil Services: सपना बड़ा, मेहनत उससे भी बड़ी Civil…
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