मेहरान अमरोही की इस फिल्म में गरीबी है, चाय वाला है लेकिन मेलोड्रामा नहीं है। फिल्म ‘चिड़िया’ की कहानी जितनी साधारण लगती है, उतनी ही सटीक चुभन छोड़ जाती है। मुंबई की चॉल, टूटी बालकनी और बिखरे सपनों के बीच दो बच्चे — शानू और बुआ — अपने बैडमिंटन सपने को पूरा करने की जद्दोजहद में जुटे हैं। और इस जद्दोजहद में अगर आपको श्रेयस तलपड़े से कॉक और इनामुलहक से नेट मिल जाए तो समझिए, ये इंडिया है बाबू। क्लासेन का क्लास खत्म! स्ट्राइक रेट तो याद रहेगा! मां की…
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