मोहम्मद वकार से मिली जानकारी के साथ Hello UP ब्यूरो : लखनऊ की गलियों में कभी जहां ज़रदोज़ी के सूत की खनक थी, आज वहां सन्नाटा है। वो कारीगर जो नवाबी दस्तानों में सोने की कढ़ाई बुनते थे, अब ई-रिक्शा चला रहे हैं। कुछ किराए के फेरी वाले बन गए हैं, और कुछ बस इंतज़ार में हैं — कि शायद सरकार कभी उन्हें देखे। You may also like:गुंडे गए गटर में, विकास चढ़ा छत पर – योगी जी का गोरखपुर गेमचेंजर! कारीगरों की मासिक आय का वितरण: 35% की आय…
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