कल लखनऊ में बड़ा मंगल की अंतिम मंगल तिथि थी और पूरे शहर में भक्ति, उल्लास और भंडारों का माहौल था। हर गली, हर चौराहे पर श्रद्धालु पूड़ी, सब्जी, हलवा और पेय बांटते नजर आए। पर इस पूरे आयोजन में एक भंडारा सबसे खास और हटके था—पेड़ों का भंडारा! मुस्लिम देशों की ज़मीन फ़लस्तीन को देने का विश्लेषण जब पेड़ बन गए प्रसाद: भूपेश रॉय की खास पहल भूपेश रॉय ने बड़ा मंगल को खास बनाने के लिए न सिर्फ पेड़ लगाए, बल्कि राह चलते श्रद्धालुओं को वृक्ष वितरण कर…
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भंडारे की बदलती परंपरा: सेवा से पेटपूजा तक, गर्मी में कैसे बचें बीमारियों से?
गर्मी का मौसम और भंडारे का न्यौता – उत्तर भारत में ये दोनों एक-दूसरे के पर्याय बन चुके हैं। पहले भंडारा मतलब – सेवा, दया, ज़रूरतमंदों की भूख मिटाना। अब भंडारा मतलब – “चलो आज खाना मत बनाओ, मोहल्ले वाले भंडारे में चलो!” 19 मई 2025: इतिहास का वह दिन जब CISF की शेरनी ने एवरेस्ट फतह किया पहले जहां भंडारे की लाइन में गरीब पहले खड़े होते थे, अब वहां AC वाले लोग इंस्टाग्राम की स्टोरी लाइन में सबसे आगे हैं – #BhandaraVibes। जब सेहत देती है चेतावनी: 1.…
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