1959 में जब बी.आर. चोपड़ा ने अपने छोटे भाई यश को डायरेक्शन की गद्दी सौंपी, तब शायद उन्होंने नहीं सोचा होगा कि हिंदी सिनेमा का सबसे संवेदनशील फिल्ममेकर पैदा हो रहा है — और वो भी एक ऐसी कहानी से, जिसमें बच्चा जंगल में साँप के साथ सेफ है, लेकिन समाज के बीच अनसेफ! धर्म, नैतिकता और ‘कुर्सी’ — कोर्ट में सब चुप! महेश कपूर (राजेंद्र कुमार) ने न सिर्फ प्रेमिका मीना को छोड़ा, बल्कि अपने बेटे को भी जंगल में फेंक दिया। लेकिन VIP बनकर लौटे तो “जज साहब”…
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‘मदर इंडिया’ – मां भी, मसीहा भी और मेकअप में खेत जोतती महिला भी!
“मां तो आखिर मां होती है… लेकिन जब वही मां बंदूक उठा ले, तो या तो क्रांतिकारी कहलाती है या Meena Kumari का स्ट्रॉन्ग वर्ज़न!” उदित राज ने उठाए सवाल: अंतरिक्ष में दलित क्यों नहीं गया? सिनेमाई भूमि पूजन: खेत, गरीबी और पसीने में लिपटी मां 1957 में मेहबूब खान ने जो किया, उसे आज कोई निर्देशक एक फिल्म में नहीं कर पाएगा – उन्होंने “मां” को राष्ट्र बना दिया और राष्ट्र को सीधा emotional guilt-trip पर भेज दिया। नर्गिस उस वक्त मां बनीं जब असल ज़िंदगी में वो सुनील…
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