बाप-बेटी का रिश्ता अब पासवर्ड से चलता है?

राधिका की हत्या कोई पहली घटना नहीं थी, लेकिन इसने रिश्तों की एक अनकही पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट पेश की है। क्या ये महज़ एक आपराधिक केस है, या हमारे घरों के भीतर रिश्तों की रुग्णता का संकेत? बेटी के कमरे से आती चुप्पी की चीख और बाप की व्यस्तता के बीच संवाद कब गुम हो गया, ये किसी को नहीं पता चला।“बेटी क्या कर रही है?” — इस सवाल की जगह अब ‘लोकेशन ऑन है?’ ने ले ली है। राजा रघुवंशी मर्डर केस- बेटियां बच गईं, अब बेटों की बारी है!…

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कलेक्टर नहीं बने, तो क्या ज़िंदा रहना भी ज़रूरी नहीं?” —नंबरों की राजनीति

आप कौन-से कलेक्टर बन गए?” – ये लाइन साधारण नहीं, समाज की सड़ी हुई सोच का आईना है। महाराष्ट्र के सांगली ज़िले में जब 12वीं की छात्रा साधना भोसले ने अपने पिता को उनके अधूरे सपनों की याद दिलाई, तो जवाब में उन्हें तर्क नहीं मिला, बल्कि थप्पड़ और घातक हिंसा मिली।बेटी की मौत के बाद जो रह गया, वो था: मेडिकल की तैयारी, अधूरे सपने, और समाज की ‘डॉक्टर या इंजीनियर नहीं बने तो फ़ेल हो’ वाली मानसिकता। ईरान-इसराइल युद्धविराम पर क़तर की चाय गरम, शांति का गर्मागर्म स्वागत!…

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