कभी जो पत्रकारिता जनक्रांति की मशाल थी, वह आज खुद वेंटिलेटर पर पड़ी है। उसकी कलम सूख गई है, आवाज़ कांप रही है, और आत्मा… वह धीरे-धीरे सत्ता के चरणों में दम तोड़ रही है। रिसॉर्ट नहीं था, शोषण का अड्डा था! अब उम्रभर जेल में काटेंगे दरिंदे जिसने तानाशाही से लड़ा, वो अब खुद गुलाम है जिस पत्रकारिता ने आज़ादी के आंदोलन में आग उगली थी, जिसने इमरजेंसी में बिना थके-बिना झुके सवाल किए थे, वही आज “वायरल वीडियो” और “सेलिब्रिटी ट्वीट्स” में उलझ कर रह गई है। सत्ता…
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