“POK लेना चाहिए या नहीं?” – ये सवाल अब सिर्फ राष्ट्रवाद का नारा नहीं, बल्कि भारत के सामने एक जटिल रणनीतिक, आर्थिक और सामाजिक चुनौती बन चुका है। सोशल मीडिया पर “अब की बार, POK हमारा” जैसे ट्रेंड चलाना जितना आसान है, हकीकत में उसे भारत में शामिल करना उतना ही कठिन और महंगा सौदा है। क्या वाकई POK को फिर से भारत में मिलाना देश के लिए फायदे का सौदा होगा, या ये ‘जज्बात में लिए गए फैसले’ जैसा कोई कदम साबित हो सकता है?इस लेख में हम आपको…
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