
15 अगस्त की सुबह… स्कूलों में राष्ट्रगान गूंजा, कॉलोनी में झंडा फहराया गया, और मोहल्ले के वर्मा अंकल ने भी 3 किलो लड्डू बांटे। बच्चों ने “भारत माता की जय” चिल्लाया और युवाओं ने बाइक की आवाज़ से आसमान फाड़ दिया।
अब जब सब हो गया है, तो भाई… घर चलो।
देशभक्ति की रेस में पेट्रोल का बलिदान क्यों?
सुबह से “तीन रंग की शान” में जो बाइकों और स्कूटीज़ की कतारें लगी हैं, वो पेट्रोल पंप वालों को स्वतंत्रता नहीं बोनस दिला रही हैं।
जब अगली बार तुम “150 ₹/लीटर” पेट्रोल पर भौकाल काटोगे, तो याद रखना — ये झंडा रैली वाली राइड उसी बिल में जुड़ी होगी।
ट्रैफिक जाम में फंसे देशभक्तों की आत्मकथा
कुछ देशभक्त ऐसे हैं जो रैली निकालते-निकालते गाजियाबाद से नोएडा पहुंच गए, वो भी अनजाने में। GPS तक कह रहा है: “अबे भाई, घर जा!”
बूढ़े लोग सड़कों के किनारे खड़े होकर सोच रहे हैं — क्या यह “आज़ादी का अमृत महोत्सव” है या “साइलेंसर का उत्सव”?
थोड़ी समझदारी भी तो दिखाओ, देशभक्तों!
तिरंगा सिर्फ बाइक पर लगाकर उड़ाने के लिए नहीं है। स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं कि आप ट्रैफिक नियमों को बंधक बनाकर रोड पर “Fast & Furious – Bharat Edition” चला दो। स्वतंत्रता के बाद जिम्मेदारी भी आती है, बाबू मोशाय।

देशभक्ति = घर सही-सलामत पहुंचना
अगर आप सच में देश से प्यार करते हैं, तो हेलमेट पहनें, नियम मानें और घर लौटकर दादी को बताएं कि देश आज भी सलामत है — और आप भी। क्योंकि एक दिन की देशभक्ति अगर अगले दिन हॉस्पिटल में भर्ती करवाए, तो न तिरंगा अच्छा लगेगा, न वो वायरल वीडियो।
“Deshbhakti Overdose” से बचिए
राष्ट्रभक्ति ज़रूरी है, लेकिन रेस लगाना नहीं। तिरंगा फहराएं, सेल्फी लें, लेकिन फिर गाड़ी धीरे चलाएं। देश को आपकी ज़रूरत है — ज़िंदा रहकर, न कि वायरल होकर।
अब कोई नहीं बचेगा! भारत की अग्नि-6 मिसाइल करेगी 12000 KM तक वार