
पश्चिमी सूडान के मर्रा पर्वत के शांत लेकिन संघर्षग्रस्त इलाके में 31 अगस्त को भारी बारिश और भूस्खलन ने ऐसा तांडव मचाया कि 1,000 से ज्यादा लोग जिंदा दफन हो गए। बचे सिर्फ़ एक – और बाकी छोड़ गए सन्नाटा।
बारिश से नहीं, बर्बादी से टूटा गांव ‘तारासिन’
लगातार कई दिनों से हो रही मूसलाधार बारिश ने ज़मीन की नींव हिला दी। और फिर आया वो मंजर जिसे गांव ‘तारासिन’ शायद कभी भूल नहीं पाएगा – भूस्खलन ने पूरे गांव को निगल लिया।
सूडान लिबरेशन मूवमेंट/आर्मी (SLM/A) का कहना है – “सिर्फ़ एक व्यक्ति जिंदा बच पाया है।”
संयुक्त राष्ट्र और दुनिया से गुहार – अब मदद नहीं आई, तो कब आएगी?
SLM/A ने संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से तत्काल मानवीय सहायता की अपील की है। पर सवाल उठता है – क्या युद्ध और भूख से जूझ रहे सूडान को अब भी सुनने वाला कोई है?
गृहयुद्ध की पृष्ठभूमि – जब एक त्रासदी में घुल गई दूसरी
भूस्खलन की यह घटना किसी सामान्य प्राकृतिक आपदा जैसी नहीं है – यह एक चल रही जंग के बीच का मलबा है। सूडान लिबरेशन मूवमेंट/आर्मी और सूडान की सेना, मिलकर अर्धसैनिक रैपिड सपोर्ट फोर्सेज़ (RSF) के खिलाफ लड़ रहे हैं। और यही इलाका बना था शरणार्थियों की अस्थायी पनाहगाह – जो अब तबाही में तब्दील हो चुका है।
2023 से अब तक: 1.5 लाख की मौत, 1.2 करोड़ बेघर
इस गृहयुद्ध ने देश को बर्बादी के किनारे ला खड़ा किया है।
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2023 से अब तक अनुमानतः 1.5 लाख लोगों की मौत हो चुकी है
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लगभग 1.2 करोड़ लोग विस्थापित हो चुके हैं
अब इस भूस्खलन ने त्रासदी में प्राकृतिक आपदा का नया अध्याय जोड़ दिया है।
न इंसाफ़ मिला, न राहत – सूडान अब दुनिया के नक्शे पर सिर्फ़ ‘Tragedy’ बन गया है
जहां दुनिया AI, चंद्रयान, और डिजिटल इनोवेशन में मसरूफ़ है, वहीं सूडान में जिंदगी मलबे में दबती जा रही है। SLM की गुहार सिर्फ़ एक रिपोर्ट नहीं, एक इंसानी चीत्कार है – जो शायद अब भी दुनिया की न्यूज़फीड में ट्रेंड करने को मोहताज है।
सूडान की कहानी – जंग, जलजला और जज्बातों की कब्रगाह
मर्रा पर्वत का ये हादसा हमें याद दिलाता है कि कभी-कभी सबसे बड़ी खबरें वो होती हैं, जिन्हें सबसे कम सुना जाता है। कई बार “एक ज़िंदा बचा” वाली हेडलाइन, पूरे सिस्टम की नाकामी का पोस्टमार्टम होती है।
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