बीमार पाकिस्तान और डॉक्टर अफरीदी: आर्मी चीफ को चूमा, इमरान को भूला

सैफी हुसैन
सैफी हुसैन

जब किसी व्यक्ति को मानसिक बीमारी होती है, तो वह डॉक्टर के पास जाता है। लेकिन पाकिस्तान में हालात ऐसे हैं कि वहां की “बीमार सोच” का इलाज नहीं, बल्कि जश्न मनाया जा रहा है। और इस उत्सव में शामिल हैं शाहिद अफरीदी, जिनका इलाज शायद क्रिकेट रिटायरमेंट के साथ ही रिटायर हो गया था।

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पाकिस्तान की बीमारी, अफरीदी का इलाज:

पहलगाम में हुए कायराना आतंकी हमले के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर चलाकर आतंक के अड्डों पर कहर ढाया। वहीं पाकिस्तान में, जो ‘आतंक’ को पालता है, वहां जश्न चल रहा है। अफरीदी जैसे पूर्व क्रिकेटर भी सेना की गोद में बैठकर उस मानसिकता को बढ़ावा दे रहे हैं।

एक वायरल वीडियो में शाहिद अफरीदी पाकिस्तान आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर को चूमते नजर आए। और यही नहीं, उन्होंने शोएब अख्तर के साथ मुलाकात की और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से अवार्ड भी लिया।

❝ जो आर्मी इमरान खान को जेल में सड़ा रही है, वो शाहिद अफरीदी जैसे ‘प्यादों’ को गले लगा रही है। अफरीदी शायद भूल गए कि पाकिस्तान में वफादारी की कीमत इमरान खान चुका रहे हैं। ❞

अफरीदी का भारत-विरोधी प्रोपगेंडा जारी:

कश्मीर पर अफरीदी का जहरीला एजेंडा नया नहीं है। इस बार भी, जब दुनिया पहलगाम हमले की निंदा कर रही थी, अफरीदी ने दावा किया कि “भारत अपने ही लोगों को मारता है।”

यह वही अफरीदी हैं जिन्होंने:

  • 2018 में कश्मीर की आज़ादी का समर्थन किया।

  • 2019 में अनुच्छेद 370 हटाने पर संयुक्त राष्ट्र और ट्रंप से हस्तक्षेप की मांग की।

  • 2020 में भारत पर धार्मिक अत्याचार का झूठा आरोप लगाया।

  • 2021-22 में बार-बार भारत को युद्ध के लिए उकसाया।

क्रिकेट से प्रोपगेंडा तक की यात्रा:

कभी पाकिस्तान के लिए छक्के मारने वाले अफरीदी अब वहां की राजनीतिक और सैन्य स्क्रिप्ट पढ़ते नजर आते हैं।
इस्लामाबाद में हुए समारोह में प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने उन्हें अवार्ड दिया, और अफरीदी ने बिना सोचे-समझे फौज की तारीफों के पुल बांध दिए।

“शाहिद अफरीदी अब सिर्फ पूर्व क्रिकेटर नहीं, बल्कि पाकिस्तान की बीमार सोच के ब्रांड एंबेसडर बन चुके हैं।”

शाहिद अफरीदी जैसे चेहरे अब क्रिकेट के मैदान नहीं, नफरत और प्रोपगेंडा के मंच पर दिखाई देते हैं। भारत में यह साफ समझा जा चुका है कि अफरीदी और उनके जैसे लोगों की भाषा पाकिस्तान की खुफिया सोच से संचालित होती है। ऐसे में भारत को सिर्फ सीमाओं पर ही नहीं, शब्दों के मोर्चे पर भी सजग रहना होगा।’

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