
कामरा एयरबेस से दिए गए बयान में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने भारत की ओर “अमन का प्रस्ताव” रखा। उनके शब्द थे –
“जंगी जुनून का बुखार अब उतर चुका है। अब अमन की बात करो तो उसके लिए हम तैयार हैं।”
यह बयान ऐसे समय में आया है जब 10 मई को भारत-पाकिस्तान के बीच सीज़फायर के बाद भी सीमाओं पर तनाव पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है।
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कमरा एयरबेस से शांति की पुकार – या रणनीतिक सिग्नल?
शरीफ़ ने यह बयान उस वक्त दिया जब वे पाकिस्तानी वायुसेना के कर्मियों और अधिकारियों से मुलाक़ात कर रहे थे। उनका यह “शांतिपूर्ण” रुख भले ही सधा हुआ लगे, लेकिन इसमें शर्तों की झलक भी साफ दिखाई दी। उन्होंने यह भी कहा –
“इस अमन के लिए जो लाज़मी शर्तें हैं, वह अच्छी तरह पता हैं। आएं, बैठ कर बात करें।”
यानी बात करने को तो तैयार हैं, लेकिन पाकिस्तान की पुरानी शर्तें – जैसे कश्मीर मुद्दा या अन्य राजनैतिक मसले – चर्चा की मूलभूमि बन सकते हैं।
प्रतिक्रिया क्या होगी?
भारत अब तक ऐसे बयानों को दोहरे मापदंड मानता रहा है, क्योंकि एक ओर पाकिस्तान अमन की बात करता है, दूसरी ओर सीमा पार आतंकवाद को रोकने में कोई ठोस कार्रवाई नहीं करता।
सवाल उठता है –
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क्या यह बयान अंतरराष्ट्रीय दबाव में दिया गया है?
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या चीन व IMF जैसे शक्तियों के सामने एक “शांति प्रिय चेहरा” दिखाने की कोशिश है?
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इस बयान की टाइमिंग और भाषा दोनों ही सोचने पर मजबूर करती हैं।
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“जंगी जुनून का बुखार” जैसे शब्दों से लगता है कि पाकिस्तान खुद को परिपक्व और संयमित दिखाना चाहता है।
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लेकिन जब तक आतंकवाद पर ईमानदारी से कार्रवाई नहीं होती, भारत के लिए ये बातें सिर्फ कूटनीतिक बयानबाज़ी ही लगेंगी।
अमन की बात अच्छी है, लेकिन बिना भरोसे के संवाद सिर्फ एक शोर है। भारत के लिए हर प्रस्ताव आतंकवाद, घुसपैठ और सीमा पर शांति से जुड़ा होना चाहिए – तभी संवाद संभव है।
जब तक शब्दों के साथ कर्म नहीं जुड़ते, तब तक ‘अमन’ सिर्फ एक मंचीय नारा ही रहेगा।
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