बिहार में सीट तो मिलेगी ही… पर कितनी? पारस जी की गठबंधन कथा

अजमल शाह
अजमल शाह

बिहार की राजनीति में जब कुछ नया नहीं होता, तब भी बहुत कुछ होता है। इस बार चर्चा में हैं राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख पशुपति कुमार पारस, जिन्होंने ऐलान किया है कि वे जल्द ही महागठबंधन (INDIA गठबंधन) में शामिल होंगे।

लेकिन twist ये है कि… सीटों पर सवाल अभी भी अनसुलझा है!

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“बात हो गई है, अब बस आना बाकी है…”

 पारस बोले, हमारी बात हो चुकी है. हम जल्द से जल्द आरजेडी गठबंधन, महागठबंधन में शामिल होंगे।

मतलब दिल दे चुके हैं, अब ‘शादी की डेट’ तय होनी बाकी है!

सीटों पर सस्पेंस:

जब उनसे पूछा गया कि गठबंधन में कितनी सीटों पर लड़ेंगे, तो पारस जी ने चुप्पी ओढ़ ली। राजनीति में चुप्पी कभी “ना” नहीं होती… अक्सर ये “अभी सौदेबाज़ी चल रही है” का सिग्नल होती है।

25 जिलों का टूर और ‘दलित विमर्श’

पारस ने बताया कि उन्होंने बिहार के 25 जिलों का दौरा किया और पाया कि:

  • “एक ही पार्टी की सरकार 20 साल से है…”

  • “कानून-व्यवस्था ध्वस्त है…”

  • “ये सरकार दलित-विरोधी है…”

  • “महिलाओं पर अत्याचार बढ़े हैं…”

मतलब आक्रोश की स्क्रिप्ट तैयार है, अब बस गठबंधन की रंगमंच पर एंट्री बाकी है।

महागठबंधन में एंट्री लेना ऐसा है जैसे शादी में बिना कार्ड के पहुंचना – सब पहचानते हैं, लेकिन कुर्सी तभी मिलेगी जब गिफ्ट भारी हो!

पशुपति पारस का ‘महागठबंधन मोह’ 2025 के बिहार चुनाव में नया मोड़ ला सकता है। लेकिन असली मसाला तो सीट शेयरिंग में है। जब तक वो तय नहीं, तब तक गठबंधन भी “मेंहदी लगा के रखना” वाला मामला ही है।

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