“दुबई बनाते बिहारी, बिहार में धूल खाते?” — राहुल का जोशीला हमला

अजमल शाह
अजमल शाह

रविवार को बेगूसराय की चुनावी हवा में राहुल गांधी का अंदाज़ कुछ बदला-बदला था — ना गांधीगिरी वाला सॉफ्ट मोड, ना महज आलोचना — इस बार पूरा जमीन से जुड़ा, जनता से सीधा जुड़ा मूड।
उन्होंने कहा, “बिहार के लोग दुनिया बनाते हैं, दुबई खड़ा करते हैं, लेकिन यहां के नेता उन्हें आगे नहीं बढ़ने देते। वे चाहते हैं कि बिहारी मजदूरी करते रहें।”

राहुल के इस बयान ने भीड़ में तालियां तो बजाईं, लेकिन NDA कैंप में माइक ऑन कर दिया!

“वर्ल्ड क्लास यूनिवर्सिटी” और ‘सपनों वाला बिहार’

राहुल ने महागठबंधन की सरकार आने पर बेहतर शिक्षा और नए विश्वविद्यालयों का वादा किया — “हम ऐसा विश्वविद्यालय बनाएंगे जहां दुनिया के लोग पढ़ने आएंगे।”

मतलब अब “डुबई-जैसे ड्रीम” की जगह “डिग्री-जैसे रियल” वादे की एंट्री हो चुकी है!

‘हर जाति-हर धर्म’ की सरकार — इमोशनल टच ऑन!

राहुल बोले, “हमारी सरकार हर धर्म, हर जाति, हर वर्ग की होगी। कोई पीछे नहीं छूटेगा।”

राजनीतिक भाषा में इसका मतलब — ‘इन्क्लूसिविटी के साथ वोट बैंक यूनिवर्सिटी भी खुलेगी।’

‘स्पेशल मेनिफेस्टो’ कार्ड — राहुल की OBC पिच

राहुल ने खासतौर पर कहा कि अतिपिछड़ा वर्ग (EBC/OBC) के लिए एक अलग ‘स्पेशल मेनिफेस्टो’ तैयार किया गया है। संदेश साफ —
जहां बीजेपी “सामाजिक समीकरण” से खेलती है, वहां कांग्रेस “घोषणापत्र समीकरण” से वापसी की कोशिश कर रही है।

GST और नोटबंदी पर फिर से हमला — “छोटा व्यापारी ठप हो गया”

राहुल ने केंद्र पर हमला बोलते हुए कहा — “गलत GST और नोटबंदी ने छोटे व्यापार को खत्म कर दिया।”

उनका तंज — “नोटबंदी में नोट नहीं, लोगों का भरोसा बंद हुआ था।”

‘वोट चोरी’ का मुद्दा और चुनाव आयोग पर सवाल

राहुल बोले, “चुनाव आयोग ने महागठबंधन के वोटरों को लिस्ट से बाहर किया है। ये लोग वोट चोरी की कोशिश कर रहे हैं।”

उन्होंने जनता से अपील की — “अपने वोट की रखवाली खुद करें, नहीं तो सरकार फिर उधार में चली जाएगी!”

‘मैं बिहार छोड़ूंगा नहीं’ — राहुल का इमोशनल क्लोजर

अंत में राहुल ने कहा — “चुनाव आते-जाते रहते हैं, पर जब भी बिहार बुलाएगा, मैं आऊंगा।”

यह लाइन सुनकर भीड़ ने कहा — “तो पक्का टिकट बुक रखिए!”

चुनावी मौसम में राहुल का ड्रीम वर्सेस रियलिटी गेम

बेगूसराय की रैली में राहुल गांधी ने ‘दुबई’ से लेकर ‘डिग्री’ तक का पूरा सिनेमा चला दिया — कहीं वर्ल्ड-क्लास यूनिवर्सिटी की बात,
तो कहीं वोट चोरी और मजदूरों की दुर्दशा।

यानी, बिहार की राजनीति अब “कट्टा वर्सेस किताब” के बीच झूल रही है!

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