POK चाहिए या परेशानी? जोश में होश न गवाएं वरना जेब और जहान दोनों जाएं!

आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)
आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)

“POK लेना चाहिए या नहीं?” – ये सवाल अब सिर्फ राष्ट्रवाद का नारा नहीं, बल्कि भारत के सामने एक जटिल रणनीतिक, आर्थिक और सामाजिक चुनौती बन चुका है। सोशल मीडिया पर “अब की बार, POK हमारा” जैसे ट्रेंड चलाना जितना आसान है, हकीकत में उसे भारत में शामिल करना उतना ही कठिन और महंगा सौदा है।

क्या वाकई POK को फिर से भारत में मिलाना देश के लिए फायदे का सौदा होगा, या ये ‘जज्बात में लिए गए फैसले’ जैसा कोई कदम साबित हो सकता है?
इस लेख में हम आपको बताएंगे कि कैसे POK लेने का सपना, भारत को आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सामरिक स्तर पर नुक़सान पहुंचा सकता है – और क्यों जोश में होश रखना ज़रूरी है।

1. आर्थिक बोझ: POK कोई मुफ्त का रायता नहीं

POK में अगर भारत प्रशासनिक नियंत्रण करता है, तो वहां की टूटी-फूटी सड़कों से लेकर बुनियादी ढांचे तक सबका बिल भारत को भरना पड़ेगा। दशकों से उपेक्षित क्षेत्र में बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करना लाखों करोड़ों का खेल होगा। और हां, ये खर्च “जनता के टैक्स” से ही होगा – कोई चंद्रयान स्पॉन्सर नहीं करेगा।

2. सामरिक उलझन: एक और सिरदर्द

POK का भूगोल जितना सुंदर है, सामरिक रूप से उतना ही संवेदनशील भी है। चीन की नाक (CPEC), पाकिस्तान की आँख और आतंकियों का अड्डा – तीनों वहीं हैं। अगर भारत POK में घुसा, तो तीन मोर्चों की लड़ाई का जोखिम खड़ा हो सकता है। यानी “Red Alert” पर रहना स्थायी आदत बन जाएगी।

 3. राजनीतिक बवाल: कश्मीर से भी आगे की कहानी

POK का भारत में विलय सिर्फ बाहरी चुनौती नहीं लाएगा, आंतरिक राजनीति भी गियर-5 में आ जाएगी। एक तरफ देशभक्ति की होड़, दूसरी तरफ प्रशासनिक और मानवाधिकार मुद्दों का अंबार। विपक्ष कहेगा: “बजट कहां से आएगा?” सत्तापक्ष बोलेगा: “नेहरू ने छोड़ा, हमने जोड़ा!”
मतलब, संसद टीवी पर रियलिटी शो बन जाएगा।

4. सामाजिक समावेशन: एक दिन में राष्ट्रभक्त नहीं बनेंगे सब

POK के लोगों ने पाकिस्तान के झंडे तले जन्म लिया है, वहां की संस्कृति, शिक्षा और विचारधारा उसी से प्रभावित है। भारत में शामिल होने के बाद सामाजिक एकीकरण करना आसान नहीं होगा।
RTI से लेकर TikTok तक की आज़ादी के बीच, भारत को वहां दिल जीतने की भी जंग लड़नी होगी, जो टैंक से नहीं सिर्फ ट्रस्ट से जीती जाती है।

5. अंतरराष्ट्रीय छवि और कूटनीतिक मोर्चा

POK को हथियाने से संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और यूरोपीय यूनियन सबकी भौंहें तन जाएंगी। और चीन तो CPEC छिन जाने पर ऐसे गरजेगा जैसे किसी ने उसका मोबाइल छीन लिया हो। भारत की “विश्वगुरु” वाली इमेज पर “आक्रामक विस्तारवाद” का टैग लग सकता है।

नज़रिया बदलो, नक्शा नहीं

POK को लेकर भावना ज़रूर है – और होनी भी चाहिए। लेकिन भावना के नाम पर तथ्य और फाइनेंस को दरकिनार करना, देश के लिए चेकमेट चाल हो सकती है।

जैसे दुकानदार 1+1 फ्री में लाता है, वैसे ही कुछ लोग “POK लो, गौरव फ्री” का ऑफर दे रहे हैं। पर याद रखिए – EMI किसे भरनी है? भारत को।

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