
पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर (PoK) के चम्याती इलाके में बुधवार को प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हुई झड़पों ने हालात को बिगाड़ दिया।
प्रदर्शन के दौरान- 3 पुलिसकर्मी मारे गए। करीब 150 पुलिसकर्मी घायल हुए, जिनमें से 8 की हालत गंभीर बताई जा रही है।
इससे क्षेत्र में तनाव चरम पर पहुंच गया है।
सरकार का बयान: “हिंसा नहीं, बातचीत ही रास्ता है”
PoK के प्रधानमंत्री चौधरी अनवारुल हक़ और संघीय मंत्री तारिक फज़ल चौधरी ने एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में हिंसा की पुष्टि करते हुए कहा-“हिंसा के ज़रिए कोई लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता। संघर्षों का समाधान बातचीत से ही संभव है।”
संघीय मंत्री ने यह भी बताया कि प्रदर्शनकारियों की 90% मांगों को मान लिया गया है, और बाकी पर चर्चा जारी है।
प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की प्रतिक्रिया
पाकिस्तान के पीएम शहबाज़ शरीफ़ ने PoK की स्थिति पर चिंता जताते हुए:
पारदर्शी जांच के आदेश दिए
प्रशासन को प्रभावित परिवारों को सहायता देने का निर्देश दिया
साथ ही कहा:
“शांतिपूर्ण विरोध हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार है, लेकिन सार्वजनिक व्यवस्था भंग करना स्वीकार्य नहीं।”
प्रदर्शनकारियों की मुख्य मांगें क्या हैं?
जम्मू-कश्मीर पब्लिक एक्शन कमेटी (PAC) की अगुवाई में हो रहे इस जनांदोलन में कई प्रमुख मांगें सामने रखी गई हैं:
राजनीतिक नेताओं के विशेषाधिकार समाप्त हों

शरणार्थियों के लिए 12 विधानसभा सीटें आरक्षित की जाएं
मुफ़्त शिक्षा, चिकित्सा और वर्दी सुविधा
एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की स्थापना
कोटा सिस्टम को समाप्त किया जाए
न्यायिक प्रणाली में सुधार
हाल की सरकार-पीएसी वार्ता विफल हो गई, जिससे जनता में नाराजगी और भी बढ़ गई।
वर्तमान हालात: बढ़ता जनाक्रोश, दबाव में सरकार
PoK में यह जन आंदोलन अब स्थानीय प्रशासन के प्रति अविश्वास और आर्थिक-सामाजिक असमानता के खिलाफ बड़ी आवाज बनता जा रहा है।
सरकार भले कह रही हो कि मांगें मानी जा रही हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर हालात अब भी तनावपूर्ण और विस्फोटक बने हुए हैं।
PoK के लोग मांग रहे हैं पहचान, हक़ और इज़्ज़त
ये सिर्फ मांगों की सूची नहीं है, बल्कि सालों से दबी हुई आवाज़ों का विस्फोट है।
PoK में उभरता यह आंदोलन सरकार के लिए चेतावनी भी है और मौके की तरह भी—अगर समय रहते समाधान नहीं निकाला गया, तो हालात और भी बिगड़ सकते हैं।
“एक थे बापू, एक थे शास्त्री – दोनों ने गढ़ा भारत का रास्ता!”